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द्वितीयकाण्डम्
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वणिग्वर्गः १०
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शम्या मेधिः पुमान् दारु कणमर्दनभूः खलम् । खलिनो च स्त्रियां खल्या खष्टः शङ्कुश्व कीलकम् ॥ १६॥ कुसूलोsस्त्री स्त्रियां कोष्टी तुषभेदेऽवगुण्डितम् । धान्यादि गुच्छे काण्डस्तु नाली स्त्री नालमित्यपि ॥ १७ ॥ अवचूर्णः पलालः स्याद धान्य काण्डेऽति निष्फले । धान्यत्वचि बुसे दलीबे तुषः पुंसि कडङ्गरः ||१८|| सस्यस्य शुक किशारु मञ्जय कणिशोऽस्त्रियाम् ।
(१) युगकाष्ट की खोली का एक नाम - शम्या १ स्त्री ० । (२) कणमर्दन के समय में जिस काष्ट में बैलों को बाँधकर चलाते हैं उस लकड़ी का एक नाम-मेधि १ पु० । (३) कणमर्दन स्थल के तीन नाम - स्वल १ नपुं० स्खलनी २ खल्या ३: स्त्री० (४) शङ्कु (खूंटा) तीन नाम - खण्ट १ शङ्कु २ पु०, कीलक ३ नपुं० । (५) मिट्टी की कोठी के दो नाम - कुसूल १५० नपुं०, कोष्टी २ खो० । (६) गूंडा (जो कि तुष के बाद चावल को विन्यस्त करते समय निकालता है) के दो नाम - तुषभेद १ पु० अवगुण्डित २ नपुं० । (७) धान्य स्तम्भ (सस्य होन भाग ) के तीन नाम-काण्ड १ पु०, नाली २ स्त्री०, नाल ३ नपुं० । (८) पलाल के दो नाम अवचूर्ण १ पलाल २ पु० । ( ९ ) धान्य त्वचा (भूसा) के चार नाम - धान्यत्व १ स्त्री बुस २ नपुं०, तुष ३ कडङ्गर ४ पु० । (१०) तीक्ष्ण (तीखे) अग्रभागवाले धान्य के दो नाम - शुक्र किशारु २५० नपुं० । (११)
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सस्य मञ्जरी के दो नाम - मञ्जरी १ स्त्रो०, कणिश २ पु० नपुं०
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