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तृतीयकाण्डम्
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नानार्थवर्ग:
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प्रदेरो बाण नारी रुग् भङ्गा अस्त्राः क्वचित्कचाः । वंशांकुरे कॅरीरोऽस्त्री वृक्षभिद्धटयोश्च ना ॥ १९०॥ आश्चर्याssलेख्ययोचित्रं यात्रा गत्युत्सवादिषु । प्रमीला निद्रयो स्तन्द्रा स्याद् धात्री तूपमातरि ॥ १९९ ॥ सुराब्वग्भूष्विरी, कर्परांशेऽपि शेकरा वरः । त्रिषु देवाहते श्रेष्ठे क्लीं स्यात्तु मनाविप्रये ॥ १९२॥ "उदारस्तु महद्दात्री नीचाऽन्या वितरः स्मृतः ।
(१) 'प्रदर' बाण रोगभेद विकाय भङ्गा में पु०, । (२) 'अस्त्र' कोण क में पु०, अश्रुशोणित में नपुं० । (३) 'करीर' वंशाङ्कुर में पु० नपुं०, वृक्षमित् घंटे में पु०, 'करवीरा' चीरिका हस्तिदन्तमूल में स्त्री० । (४) 'चित्रा' आखुपर्णी (ओषधि) गोडुम्बा सुभद्रा दन्तिका माया सर्प नक्षत्र नदी भेद में स्त्री०, चित्रं 'तिलक आलेख्य कर्बुर अदभुत में नपुं०, तद्युक्त में त्रि०, चित्री झिल्ली में स्त्री० गोस्तन वस्त्रभेद रेखालि खननभेद में नपुं० । (५) 'यात्रा' यापनोपाय गति देवार्चनोत्सव में स्त्री० । ( ६ ) 'तन्हा' 'प्रमीला (नींद थकावट आदि) स्त्री० । ( ७ ) ' धात्री' उपमाता माता वसुमति आमलि में स्त्री । (८) 'इरा' सुरा अवाक भू में श्री. । (९) 'शर्करा' कर्परांश उपल ( पत्थल) खण्ड विकृति शर्करा - न्तित देश रुग्भेद [ रागभेद ] शकल में स्त्रो० || (१०) 'वर' जामाता वृति देवतादेराभिप्सितं षिद्ध में पु०, श्रेष्ठ में स्त्री०, कुंकुम में नपुं०, वरी शतावर में स्त्री०, 'वरा' त्रिफला में स्त्री०, मनाक् प्रिय में नपुं. । (११) 'उदार' महत् दाता में पु० दक्षिण (अर्थात् कुशल चतुर दक्ष) में त्रि० । (१२) 'इतर' नीच और अन्य में त्रि० ।
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