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द्वितीयकाण्डम् १८८
वशवर्गः ८ पर्वण्याष्टाहिके पक्षे-भवं तु पाक्षिकं स्मृतम् । पर्वसंवत्सरी नाम्ना सांवत्सरिकमुच्यते ॥२३॥ उपात्ययोऽतिपातः स्यात्समेऽभ्युत्थान गौरवे । सावधेभ्यस्तु कर्मम्यो निवृत्तिव्रतमस्त्रियाम् ॥२४॥ पृथगात्मता विवेकः स्यादुपैवास उपोषणम् । पारणे तस्य निस्तार एकभक्तं सकुन्दुजि ॥२५॥ सदाचाराऽध्ययनयो रुत्कर्षों ब्रह्मवर्चसम् । परित्राण मश्करी भिक्षुः सन्न्यासीन्यथ तापसः ॥२६॥ तपस्वी संयमी तु स्याद् दान्तो वाचंयमो मुनिः ।।
(१) पक्खी के दो नाम--पक्षेभव (पक्षमव) १ , पाक्षिक २ नपुं० । (२) संवत्सरो के दो नाम- सम्वत्सरी १ बी०, साम्वत्सरिक २ नपुं० । (३) मर्यादा उल्लंघन के दो नाम-उपात्यय १ अतिपात २ पु० (४) सत्कार करने के दो नाम-अभ्युस्थान १ गौरव २ नपुं० । (५) साऽवध कर्मों से निवृत्ति का एक नाम- व्रत १पु० नपुं० । (६) विवेक के दो नाम-पृथगात्मता १ स्त्री०, विवेक २ पु० । (७) उपवास के दो नाम-उपवास १ पु०, उपोषण २ नपुं० । (८) पारणा के एक नाम-पारणा १ स्त्रो० । (९) एक समय भोजन का एक नाम एकभक्त १ नपुं० । (१०) सदाचारे और अध्ययन में उत्कर्षता का एक नाम ब्रह्मवर्चस पु० नपुं० । (११) सन्यासी के चार नाम-परिवाट १ मश्करी २ भिक्षु ३ सन्यासा १ पु० । (१२) तापस के दो नाम-तापस १ तपस्वो २ पु० । (१३) मुनि के नौ नाम- संयमी १ दान्त २ वाचंयम ३ मुनि ४
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