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द्वितीयकाण्डम् १९५
क्षत्रियवर्गः ९ नैष्किको रजताध्यक्षः कोशाध्यक्षस्तु कोशपः ॥९॥ धन पालो धनाध्यक्षः स्वर्णाध्यक्षस्तु भौरिकः । प्रशस्त कर्मकर्तृणां मानदानेऽभिनन्दनम् ॥१०॥ अधिकारिण्यधिकृताऽध्यक्षाऽधिपति मालिकाः । जयपत्र लब्धिपत्रं समौ मध्यस्थ साक्षिणौ ॥११॥ माध्यस्थं साक्षिता प्रातिभाव्य लग्नकते समे । यदावेदनपत्रं तत् प्रार्थनादलमुच्यते ॥१२॥ प्रमाणपत्रं यत्तस्याद् व्यवस्थापत्रमित्यपि । अभियोगैस्तु राजादिष्वपरार्धानवेदनम् ॥१३॥
(१) चान्दो के रुपैया छापने छपवाने वाले अधिकारी के दो नाम-नैष्किक १ रजताऽध्यक्ष २ पु । (२) स्वजाञ्ची के दो नाम-कोशाध्यक्ष १ कोशप २ पु. । (३) धान्य संरक्षण अधिकारों के दो नाम-धनपाल १ धनाध्यक्ष २ पु. । (४) सुवर्ण विभागके अधिकारी का एक नाम - भौरिक १ पु. । (५) सम्मान देने का एक नाम-अभिनन्दन १ नपुं. । (६) अधिकारी के पांच नाम-अधिकारी १ अधिकृत २ अध्यक्ष ३ अधिपति ४ मालिक ५ पु.। (७) दिया हुआ न्यायपत्र के दो नाम-जयपत्र १ लब्धिपत्र २ पु. । (८) साक्षी के दो नाम-मध्यस्थ १ साक्षी २ पु. । (९)माक्षांके वक्तव्यता के दो नाम-माध्यस्थ्य १ नपुं., साक्षिता २ स्त्री. । (१०) जमानत के दो नाम-प्रतिभाव्य १ नपुं. लानकता २ स्त्री । (११) आवेदन पत्र के दो नाम-आवेदन पत्र १ प्रार्थनादल २ नपुं.। (१२) प्रमाणपत्र के दो नाम प्रमाणपत्र १ व्यवस्थापत्र नपुं । (१३) मुकदमा के तीन नाममभियोग १ पु. । अपराध २ निवेदन ३ पु. । .
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