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तृतीयकाण्डम्
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जतु कशेरु वस्तूनि त्यक्त्वा 'तुर्ववसानकाः । * कणभमरषोपान्त्या अदन्ताश्वेदमी तथा ॥ १७॥ टथन पय सोपान्त्या गोत्रा
चरणाह्वयाः ।
लिङ्गादिनिर्णयवर्गः ५
( १ ) जतु वस्तु और कशेरुशब्द को छोड़कर तु शब्दान्त और रुशदान्त शब्द पुल्लिंग होते है - जैसे- हेतु, सेतुः धातुः कुरुः, मेरुः,
सरुः इत्यादि तु वस्तु और कशेरु ये तीन शब्द तो तु और रु शब्दान्त होने पर भी पुल्लिंग नहीं है अपि तु नपुंसक लिंग हो माने जाते है | यहां पर यद्यपि किसी विशेष अपवाद से बाधित नहीं होने पर हो सामान्यरूप से पुल्लिंगादि लिंगों का संग्रह किया गया है तथापि उसी विशेष अपवाद का फलितार्थ ही जतु वस्तु कशेरु का निषेध किया हुआ समझना चाहिये । (२) ककार णकार भकार मकार रेफ षकार उपान्त्यवाले अदन्त शब्द तथा टकार थकार नकार पकार यकार सकार उपान्त्य वाले अदन्त शब्द पुल्लिंग होते है। जैसे- अङ्कः अर्कः लोकः शोकः कोकः गुणः घुणः, पाषाणः दर्भः गर्दभः सरभा होमः धूमः ग्रामः काम; वासः, शीकरः झझरः समीरः कीरः माषः तुषः रोषः, पटः घटः सरटः करटः नाथः सार्थः शपथः जनः इनः अपघनः कूपः यूपः सूपः, कलापः विनयः प्रणयः अपनयः रसः हासः अर्थात् वंश के आदि पुरुष वाचक शब्द गौतमः भरद्वाजः, वसिष्ठः काश्यपः -इत्यादि । (४) चरण अर्थात् वेद शास्त्रा वाचक शब्द पुल्लिङ्ग
पनसः इत्यादि । (३) गोत्र
पुल्लिङ्ग होते हैं जैसेशाण्डिल्यः, कात्यायनः
होते हैं जैसे-कठः, कलापः, बहुवृचः इत्यादि ।
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