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प्रथमकाण्डम्
जलवर्ग:
परीवाहो जलोच्छ्वासः प्रवृद्धजलनिर्गतों । हैदोऽगाधजले पुंसि जलाधारो जलाशये ॥१५॥ उदपानं स्त्रियां नस्या दन्धुः कूपः प्रहि पुमान् । विदारको भवेत्कूपो गर्तेऽम्बु प्राप्तये कृतः ॥ १६ ॥ त्रिकातु नेमिः कूपस्य वीनाहो मुखबन्धनम् । देवखातमखातं स्यात्खातं पुष्करिणी स्त्रियाम् ॥ १७ ॥ पद्माकरस्तटाकोsस्त्री तडागः सरसी सरः । कासारः पवेल त्वल्प सरो वैशन्त इत्यपि ॥ १८ ॥ आधारो जलाधान्यालवाला वापोssवाळस्तु क्षुद्रजे । खेयँ स्यात्परिखा वाप्य दीर्घिक द्वे अमृ स्त्रियाम् ॥ १९ ॥ ॥ हिन्दी - (१) प्रवृद्ध जल निर्गम के दो नाम - परिवाह, १ जलोच्छ्वास २ पु० । (२) अगाध जल को 'हृद' कहते हैं । (३) जलाधार को ' जलाशय' कहते हैं । (४) कूप के पांच नाम उदपान १, अस्त्रो० अन्धुर २, कूप ३, प्रहि ४, विदारक ५ पु . । (५) कूप के अन्दर में डोरी आदि बन्धन यन्त्र के दो नामत्रिका १, नेमि २, स्त्री० । (६) कूप के मुखबन्धन का 'विनाह' कहते हैं पु० । (७) अकृत्रिम जलाशय के दो
नाम - देवखात
१, अखात २, पु. पद्माकर २, तटाक रिणी ६, सरसी ७ तालाव के तीन
वेशन्त ३ पु० ।
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नाम - खात १,
। (८) तालाव के आठ ३, तडाग ४, कासार ५, अस्त्री० पुष्कस्त्री०, सरस् ८ नपुं० । (९) अल्प (छोटे) नाम - पल्वल १, अल्पसरस् २, नपुं०,
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