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प्रथमकाण्डम्
तरंङ्ग भङ्गौ लहरी वोचिरूर्मिर्द्वयोर्मतः । जलभ्रमिः स्यादावर्तः कल्लोलोल्लौ महोर्मिषु ॥ १० ॥ विमुँह स्त्रियां पृषत्की स्याद् बिन्दुः पृषतः पुमान् पुभेदो भ्रमः पुंसि चक्रं च जलनिर्गमे ॥ ११ ॥ स्यात् त्रिलिङ्ग तैंटक्लं प्रतीरं तीर रोधसी । परतीरं तु पारं स्या दवारमपरं तथा ।। १२ ।। सिन्धुमेले तु संभेद: प्रणाली जलपद्धतौ । अत्री द्वीपोऽन्तरीपंच जलाभ्यन्तस्तटे द्वयम् ॥१३ सैकतं सितापुब्जे द्वे सिक्ताऽसिकते त्रियौ । जलक्रमेण संजाते तटे पुर्लिंन मीरितम् ॥ १४॥
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जलवर्ग: ९
(१) नलभ्रमि को 'आवर्त' कहते हैं पुं. (२) तरह के दो नामकल्लोल १ उल्ल २ पु. ( ३ ) बिन्दु के चार नाम - विप्रुष १ स्त्री, पृषत् २ नपुं., बिन्दु ३, पृषत् ४ पु. (४) चक्राकार से अधोगामी जल के तीन नाम-पुटभेद १ भ्रम २ पु., चक्र ३ नपुं. (५) तट के पांच नाम-तट १ कूल २, प्रतीर ३, तीर ४, रोधस् २ त्रिलिङ्ग (३) नदी आदि के परतट को 'परतीर' ३, और 'पार' कहते हैं. पूर्वतटको 'अवार ' और ' अपर' कहते है नपुं, ! (७) नदि संगम का एक नाम - संभेद १ पु . । ( ८ ) जलमार्ग का एक नाम - प्रणाली स्त्री. (९) जल के अन्तर्वर्त्ती दोष के दो नाम द्वीप १ अन्तरीप २ पु . । (१०) सिकता समूह के एक नाम सैकत १ नपुं, ११ रेती के दो नाम - सिक्ता १ सिकता २ स्त्री । (१२) जल घार से बने हुए तट को 'पुलिन' कहते है ।
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