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द्वितीयकाण्डम्
११४ वनस्पतिवर्गः४ द्वयो भल्लातकोभल्लः वीरवृक्षो ह्यरुष्करः ॥८३॥ जयो च विजया भङ्गा गजा स्त्रीच रसः पुमान् । सेंजिंक्षारः सर्जिकाच यवक्षारो यवाग्रजः ॥८४॥ सैन्धवं माणिमन्थंच विंड द्राविड भासुरम् । सांभर रौमलवणं रुच्य सौवर्चलं लघु ॥८५।। लवणोदधि संजातं सामुद्रं वशिरं च तत् । 'औद्भिदं पांशुलवणं यज्जातं भूमितः स्वयम् ॥८६॥
सौभाग्यं टंकणं क्षारो नवसारो नसादरः । (१) भिलावा के चार नाम-भल्लातक १, भल्ल२, पु० श्री०, वीरवृक्ष ३, अरुष्कर४ पु० । (२) भङ्ग के तीन नामजया१, विजया२, भङ्गा३ स्त्री० । (३) गांजा का एक नाम-गञ्जा १, स्त्री० । (४) चरस का एक नाम-चरस १ पु० । (५) सज्जीवार के दो नाम-सर्जिक्षार १ पु०, सर्जिका२ स्त्री०। (६) जवखार के दो नाम-यवक्षार १, यवाग्रजर पु० । (७) सेंधानमक के दो नाम-सैधव१, मणिमन्थ२ नपुं. (८) काला नमक के तोन नाम-विड१, द्राविड़२, भासुर३ नपं० । (९) सांभर नमक के दो नाम - साम्भर १, रोमक२ न.। (१०) नमक के तीन नाम-रुच्य१, सौवर्चल२, लघु३ नपुं० । (११) सामुदी नमक के दो नाम-सामुद्र १, वशिर२ नपुं०। (१२) खारा नमक के दो नाम-ओद्भिद १, पांशुलवण २ नपुं० (१३) टंकणखार (सुहागा) के दो नाम-सौभाग्य१, टंकण२ नपुं० । (१४) नसादर के दो नाम-नवसार १, नसादर२ पु०।
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