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तृतीयकाण्डम्
नानार्थवर्गः ३ स्त'म्भः स्थूणा जडीभावः स्त्रियान्तु सुरभिवि । 'दुन्दुभिः पुंसि भेर्या स्यात्स्यक्षे बिन्दु त्रिकद्वये१५७ बल्लभो दयिताऽध्यक्ष सल्लक्षण तुरङ्गमाः । क्षत्रियेऽपि पुमान्नाभिः.......
इति भान्ताः । ............... रश्मिः किरण प्रग्रहौ ॥१५८॥ परिभुक्तोज्झिते जीणे यातयाम ‘प्लवंगमः। कपि भेको हरिकृष्णौ श्यामः स्त्री शारिवा निशा । वृन्दे स्तोत्रेऽध्वरे स्तोमः शौयों द्योगौ "पराक्रमः ।
(१) 'स्तम्भ' गृहस्तम्भ स्थूणा सूर्मी जडीभाव में पु० । (२) 'सुरभि शल्लकी (साही सेली)मातृभूमि गो सुरगो में स्त्री०, चम्पक वसन्त जातीफल विख्यात सचिव धीर चैत्र में पु०, स्वर्ण गन्धोत्पल में नपुं, सुगन्धिकान्त में त्रि० । (३) 'दुन्दुभि' वरुण दैत्य मेरी में पु०, अक्ष बिन्दु त्रिकद्वय में नपुं० (दुन्दुभ्या खलु तत्कृतं पतितया यद् द्रौपदी हारिता) । (४) 'वल्लभ' दयित अध्यक्ष सल्लक्षणतुरङ्गम में त्रि० । (५) 'नाभि' मुख्यनृप चक्रमध्य क्षात्रय में पु०, प्राणि प्रतीक में पु० नपुं०, कस्तूरिकामद में स्त्र'. । इति भान्ताः । (६) 'रश्मि' किरण प्रग्रह (पक्ष्म) में पु०। (७) 'यातायाम' परिभुक्तोज्झित में जीर्ण में त्रि० । (८) 'प्लवंगम' कपि भेक में पु० । (९) 'श्याम' प्रयागवट वारिद वृद्धदारक पिक हन्त् िकृष्ण में पु०, तद्वान् में त्रि०, सिन्धु लवण में नपुं०, शरिवा अप्रसूताङ्गना प्रियङ्गु यमुना त्रियामा कृष्ण त्रिवृतिका नोलिका में स्त्री० । (१०) 'स्तोम' वृन्द स्तोत्र अध्वर में पु० । (११) 'पराक्रम, सामर्थ्य शौर्य उद्योग में पु०।
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