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तृतीयकाण्डम् २६०
प्रकीर्णवर्गः १ प्रथा ख्याती प्रमा सम्यग् ज्ञाने प्रमिति रित्यपि ॥२५॥ तर्पण प्रीणनं तुल्ये कम्पनं तु विधूननम् । व्याप्तौ संमृर्छन छेदे वर्द्धन गदने गदः ॥२६॥ शुभकर्माऽवदाते स्तः कार्मणं मूलकर्मणि । शकुंल्यादि समूहे स्या देकैकं वक्ष्यमाणकम् ॥२७॥ क्रमाच्छाष्कुलिकं पृष्ठ्यं ब्राह्मण्यं शाक्तुकं तथा । आपूपिकच साहस्रं भक्ष्यं कारीष्य धैनुके ॥२८॥ काकं मानुष्यकं बाकं स्त्रैण पौंस्नं च यौवतम् ।
(१) ख्याति अर्थ में 'प्रथा' स्त्री० । (२) प्रमाण के दो नाम-प्रमा १ प्रमिति २ स्त्री० । (३) तृप्त होने के दो नाम-तर्पण १ प्रीणन २ नपुं० । (४) डोलना (मान्दोलित) अर्थ में दो नाम-कम्पन १ विधूनन २ नपुं० । (५) सब तरफ व्याप्त के दो नाम-व्याप्ति १ समर्छन २ (अभिव्याप्ति) स्त्री० । (६) छेद अर्थ में भी एकनाम-बर्धन १ नपुं० । (७) स्पष्ट बोलने के दो नाम-गदन १ नपुं० गद २ पु० । (८) शुभकर्म के दो नाम-शुभकर्म (शुभकर्मन्) १ अवदान २ नपुं० । (९) मुलकर्म के दो नाम-कार्मण १ मूलकर्म (न्) २ नपुं०। (१०) शष्कुली आदि. समूह का एक नाम-शष्कुली १ समूहमें शाष्कुलिकम् १, पृष्ठ समूह का-पृष्ठय, ब्राह्मण समूह का-ब्राह्मण्य, शक्तु समूहका-शाक्तुकम् , अपूप समूह का-आपूपिकम्, सहस्त्र समूह का-साहस्रम्, भिक्षा समूह का-भैशम्, करीष समूह का कारीज्य.धेनु समूह का-धेनुकम्, काक समूह का-काकम, मनुष्य समूह का-मानुष्यकम्, बकसमूह का-बाकम्. स्त्रो समूह का- स्त्रैणम्, पुंस समूह का-पैस्निम्, युवती समूह का-योवतम् ये सब नपुं०.
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