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तृतीयकाण्डम्
२८६ नानार्थवर्ग३ आनेकः पटहे भेर्या प्रयुकश्चिपिटे शिशौ ॥५॥ आलोको दर्शने वन्दि भाषणोद्योतयोरपि । पेचकः करिणां पुच्छ मूलोपान्तेऽप्युलूकके ॥६॥ पुलोको भक्तसिक्थेऽपि संक्षेपे तुच्छ धान्यके । द्वयो मैघोपले, पक्षि विशेषे दाडिमे पुमान् ॥७॥ करकः कमण्डलौ नस्त्री करके०००००। ००००००००००००००ऽथ विनायकः ।। गुरौ ताक्ष्ये जिनेविघ्ने हेरम्बे वृश्चिको द्रणौ ॥८॥ राश्योषधि भिदोः शूक, कीटे किंष्कुर्वित स्तिषु । हस्ते च गैरिक धातु रुक्मयो रनृतेऽप्रिये ॥९॥
(१) पटह और भेरी अर्थ में 'आनक' है पु० । (२) कच्चे धान्य का पौआ अथवा लाजा और शिशु अर्थ में 'पृथुक है पु०। (३) दर्शन वन्दि भाषण और उद्योत अर्थ में आलोक है पु० (४) हाथियों के पुच्छ मूल किनारा और उलूक अर्थ में 'पेचक' है पु० । (५) तपेली के नीचे का जला हुआ भात
और संक्षेप और तुच्छ धान्य अर्थ में 'पुल्लक' है पु० । (६) मेंघ से पड़ने वाले ओले अर्थ में 'करका' पु० स्त्री०, पक्षि विशेष तथा दाडिम अर्थ में पु०, कमण्डलु और करङ्क (त्वङ् मांस रहित हड्डो) अर्थ में पु० नपुंसक । (७) गुरु गरुड जिन विधन गणेश (शिवजी के छोटे पुत्र) अर्थ में 'विनायक' है पु० । (८) दुणि (अम्बु द्रोणी और कच्छपी) राशि ओषधिमित् शूककीट (विच्छू) अर्थ में 'वृश्चिक' है पु. । (९) वितस्ति (बारह अंगुल का वित्ता) हस्त अर्थ में 'किष्कु' पु० नपुं० (१०) धातु और सुवर्ण अर्थ में 'गैरिक' है नपुं०।
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