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तृतीयकाण्डम्
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नानार्थवर्गः २
॥ ० ॥ अथ नानार्थवर्ग: प्रारभ्यते ॥ ० ॥ पर्यायवृत्त्या नानार्थाः केचनोक्ताश्च शेषिताः । अर्थान्तरे प्रयुजानाः पुनरुक्तिं न विभ्रति ॥ १ ॥ त्रिदिवाऽऽकाशयोनको नाकु र्वल्मीक शैलयोः । भूवनेऽपि जने लोकैः श्लोकः पद्ये यशःसुच ॥ २ ॥ कैः समीराssत्मदक्षाऽग्नि यमब्रह्मसु बर्हिषु । ब्रध्ने पुमान् सुखे शीर्षे जलेकंतु नपुंसकम् ||३|| नागे वा वर्धकौ तक्ष-कोऽर्कः स्फटिक सूरयोः । जम्बुको वरुणे क्रोष्टौ खङ्गेवा सायेंकः शरे ॥४॥ कोऽङ्केऽपवादेऽथाश्विहोत्सङ्गयोः पुमान् ।
हिन्दी - (१) कितनेक नानार्थ शब्द स्थल स्थलपर अपने २ पर्यायों के साथ कहे जा चुके हैं फिर भी वे यहां अर्थान्तर में कहे जायंगे अतः पुनरुक्ति दोष से दुष्ट नहीं होगें । (२) स्वर्ग और आकाश अर्थ में 'नाक' है पु० । (३) वल्मीक और पर्वत को 'नाकु' कहते हैं पु० (नाकिन से 'देव' जाने) । (४) भुवन और जनबोधक 'लोक' है पु० । (५) पद्य व यश अर्थ में 'श्लोक' है पु० । (६) वायु आत्मा दक्ष अग्नि यम ब्रह्मा मयूर सूर्य अर्थ में 'क' है पु. और सुख मस्तक जल अर्थ में नपुं० (७) नाग और बढाई का नाम 'तक्षक' है पु० । (८) स्फटिक और सूर्य को 'अर्क' कहते हैं पु० । (९) वरुण और क्रोष्टा अर्थ में 'जम्बुक' है पु० । (१०) खड्ग और बाण का नाम - 'सायक' है पु० । (११) अङ्क और अपवाद अर्थ में 'लक' है पु० । (१२) चिह्न और क्रोड (गोद) अर्थ में 'अङ्क' है पु० ।
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