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द्वितीयकाण्डम्
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मानववर्गः ७ शिरोजातस्य पलितं शुक्लता विस्रसाजरा । डिम्भोत्तानशया बाला स्तनपाऽपि स्तनन्धयी ॥३८॥ बाले माणवकोहार भेदे कुपुरुषेऽपि च । स्थेविरे प्रवया वृद्धो वयःस्थे तरुणो युवा ॥३९॥ अतिवृद्ध द्वयोज्यायान् ज्येष्ठेस्तः पूर्वनाऽग्रजी । यविष्ठश्चे कनिष्ठश्च जघन्येऽवरजाऽनुजौ ॥४०॥ वलिनो वलिभद्रश्च जरसाश्लथ चर्मणि ।
"मुकेशो केशिकः केशी हूस्वै खर्वी तु वामनः ॥४१॥ (१) शिर के वाल पक जाने का एक नाम-पलित १ नपुं० । (२) वृद्धावस्था के दो नाम-विनसा १ जरा २ स्त्रो० । (३) बालक के पांच नाम-डिम्भ १ उत्तानशय २ बाल ३ स्तनप ४ स्तनन्धयी ५ पुं०। (४) बाल अर्थ में 'माणवक' शब्द का प्रयोग होता है, हारभेद में तथा 'कुपुरुष' में भो पुं० । (५) वृद्ध के तीन नाम-स्थविर १ प्रवया (प्रवयस्) २ वृद्ध (जीनजरन् जीर्ण) ३ पुं० । (६) युवा पुरुष के तीन नाम-वयस्थ १ तरुण २ युवा(युवन्) ३ पुं० । (७) अतिवृद्ध तथा ज्येष्ठ अर्थ में 'ज्यायान्' होता है पु० । (८) ज्येष्ठ अर्थ में 'पूर्वज, अग्रज' का प्रयोग होता है पु० । (९) छोटे भाई के चार नाम-यविष्ठ १ कनिष्ठ २ अवरज ३ अनुज४ पु० । (१०) वृद्धावस्था के कारण संकुचित चमड़े के दो नाम-वलिन १ वलिभद्र २ पु०। (११) सुन्दर केशवालों के तीन नाम-सुकेश १ केशिक २ केशी (केशिन्) ३ पु० । (१२) वामन के तीन नाम- हस्व १ खर्व २ वामन ३ पु०।
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