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द्वितीयकाण्डम्
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क्षत्रियवर्ग: ९ स्त्रियामाज्ञाऽपराधे तु मन्तु रागो नपुंसकम् । मन्त्रः स्यादषडक्षीणो भ्रष औचित्य पातनम् ॥३१॥ त्रिषु त्वौपायिकं न्याय्य युक्तं बलि करौ समौ । स्यात्तदात्वं तु तत्कालः समे उद्दान बन्धने ॥३२॥ गलहस्तोऽर्धचन्द्रः स्याद् धारो दण्ड प्रणालिका । स्यादुद्भन्धनमुत्प्राशः शूलैदण्डस्तु शूलिका ॥३३॥ प्रक्रियात्वधिकारोऽस्त्रि शुल्कं घट्टादिजः करः।
(१) अपराध के तीन नाम-अपराध १ मन्तु २ पु., आगस ३ नपुं. । (२) गुप्तमन्त्र का एक नाम-अषडक्षण १ पु. । (३) उचित से नीचे पड़ने का एक नाम-भ्रष१ नपु.। (४) न्यायसिद्ध के तोन नाम- औपयिक १ न्याय्य २ युक्त ३ त्रिलिङ्ग 1 (५) टेक्सकर के दो नाम-बलि १ कर २ पु. । (६) तत्काल (वर्तमान) काल के दो नाम -तदात्व १ नपुं.। तत्काल २ पु. (७) बन्धन के दो नाम-उद्दान १ बन्धन २ नपु. । (८) अंगूठा और तर्जनी अंगुलो को फैलाकर किसी के गले पर रख्व के धकेलना 'अर्धचन्द्र' है पु. । (९) न्याय कानुन के दो नाम-धारा १ दण्डपणा लका २ स्त्री. । (१०) फांसी के दो नाम-उद्वन्धन १ पु., उप्राश २ पु । (११) शूलीदण्डके दो नाम-शूलदण्ड १ पु. शूलिका २ स्त्री. । (१२) राजा आदि के छतधारण आदि काम को संभालने के दो नामप्रक्रिया १ स्त्री.. अधिकार २ पु.नपु. । (१३) नदि आदि पार उतार ने के टिकट का एक नाम-शुल्क १ पु० नपु. ।
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