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तृतीयकाण्डम्
नानार्थ वर्गः ३
तमोनुदोऽग्निचन्द्रार्कौ स्युस्तुयांशांऽह्नि रश्मयः ॥ ११० पौदा विश्रम्भ निन्दाऽऽज्ञा अपवादोऽथ गोष्पदम् । सेविते चाऽपि मानेऽथ ऋतु वत्सरयोः शत् ॥ १११ ॥ मन्दाः निर्भाग्य मूढाऽल्पाsपटवोऽतीक्ष्ण कोमलौ । मृदुः विशारदो विद्वत्प्रगल्भा वथाssस्पेदम् ॥ ११२ ॥ प्रतिष्ठा कृत्ययोः स्वदु मधुरे ष्टौ त्रिषु स्त्रियाम् । संविदे आजि क्रियाकार संभाषा ज्ञान नामसु ॥ ११३ ॥ ककुच्चैककुदं श्रेष्ठ वृषाङ्ग राजलक्ष्मसु । शब्दे वाक्ये पदे पाद चिह्नाऽपदेश वस्तुषु ॥ ११४ ॥ व्यवसाय श्लोकपाद त्राण स्थानेषु लक्ष्मणि । पदं क्लीase किरणे मेदिनी कृन्मते पुमान् ।। ११५ ।।
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(१) 'तमोनुद' अग्नि चन्द्र अर्क में पुं० । (२) 'पाद' चतुर्थाश अह्नि रश्मि में पुं० । ( ३ ) ' अपवाद' विश्रम्भ आज्ञा निन्दा में पुं० । ( ४ ) ' गोष्पदं' गोपद में गोपदाङ्कितभूगत (गाय के खुर के चिह्न) अवकाश में नपु० । (५) 'शरत्' ऋतु और वत्सर में स्त्रो० । (६) 'मन्द' निर्भाग्य मूढ अल्प अपटु अतोक्ष्ण स्वैर रोगी में त्रि०, हस्तिजात्यन्तर में शनि में पुं० । (७) 'मृदु' अतीक्ष्ण कोमल में त्रि० । (८) 'विशारद' सुप्रगल्भ (घृष्ट) विद्वान् में त्रि० । (९) 'आस्पद' प्रतिष्ठास्थान कृत्य में नपुं० । (१०) 'स्वादु' मधुर में मनोज्ञ में त्रि० । (११) 'संविद' समर क्रियाकार (क्रिया का नियम ) संभाषा ज्ञान नाम प्रतिज्ञा आचार संकेत तोषण में स्त्रो० । (१२) ' ककुद कुकुद ककुद' श्रेष्ठ (प्राधान्य) वृषाङ्ग राजलक्ष्म (नू) में पुं० नपुं० । (१३) 'पद' शब्द वाक्य पद पादचिह्न अपदेश वस्तु व्यवसाय श्लोकपाद त्राण स्थान लक्ष्म (चिह्न) में नपुं०, मेदिनीकार के मत से किरण में पुं० ।
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