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तृतीयकाण्डम्
३११
मदे आमोदवद् हर्षे रहस्युपनिषत् स्त्रियाम् ।
नानाथवर्गः ३
इति दान्ताः ।
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प्रत्यग्रेऽप्रतिभेऽपि स्था च्छीरद.... काय उन्नतौ ॥ ११६ ॥ उत्सेधो व्याम वटयो र्न्यग्रोधोऽथाऽवलम्बिते । अविदूरेऽप्यवष्टब्धः स्नुषा जाया स्त्रियो वधूः ॥११७॥ मधे क्षौद्रे पुष्परसे मध्वन्धे तु तमस्यपि । गर्विते पण्डितं मन्ये " समुन्नद्धोऽथ भूषिते ॥ ११८ ॥ ख्याते प्रसिद्धः " श्रद्धा" तु स्पृहा संप्रत्ययोः स्त्रियाम् । त्रिषु रम्येsपि साधु स्यात्प्रकारे च विधौ विधै ।११९ । सिन्धुर्नद" विशेषोऽब्धि देशोना स्त्री सरिद्यदि ।
(१) 'मद' आमोद के जैसे हर्ष में रेतस् कस्तूरी गर्व इमदान में पुं० । (२) 'उपनिषद्' विजन वेदान्त और धर्म में स्त्री० । (३) 'शारद' नूतन अप्रतिम (अप्रतिम) में पुं० । इति दान्ताः । (४) 'उत्सेध' काय उन्नति में पुं० । (५) 'न्यग्रोध' व्याम वट और शमीतरु में पुं० । (६) 'अवष्टब्ध' अवलम्बित अविदूर आक्रान्त में पुं० । (७) 'वधु' स्नुषा जाया स्त्री में स्त्री० । (८) 'मधु' नोर क्षीर मध क्षौद्र पुष्परस में नपुं०, दैत्य चैत्र वसन्त जीवकोश मधुद्रुम में पुं० । (९) 'अन्ध' तमस् अर्थात् तिमिर में । नपुं०, चक्षु होन में त्रि० । (१०) 'समुन्नद्ध' समुद्भूत दृप्त पण्डितं मन्य में त्रि० । (११) 'प्रसिद्ध' भूषित तथा ख्यात में त्रि० । (१२) 'श्रद्धा' स्पृहा संप्रत्यय ( आदर ) में स्त्री० । (१३) 'साधु वाधुषिक (सद से जीविका वाला) रम्य ( चारु मनोज्ञ सुन्दर ) सज्जन में त्रि० । (१४) 'विधा' गजान्न (हाथी के खोराक ) ऋद्धि प्रकार वेतन विधि में स्त्री० । (१५) 'सिन्धु' नद विशेष, अब्धि देश (विश्व कोश के मत से 'इभदान' मेदिनी कोश के मत से 'वमथु '
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