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प्रथमकाण्डम्
जलवर्गः ९
सांयात्रिको द्वयोनका वणिक पोतवणिक्च सः । अभिः काष्ठस्य कुद्दाले प्रसन्नाऽच्छतु निर्मलः ॥ ३२ ॥ समलः कलुषोऽनच्छ अविलश्चेत्यमी समाः । निम्नं गभीरगम्भीरे अगाधेऽस्ताद्य इत्यपि ||३३|| धीरे दाश कैवर्ती मत्स्याधानी" कुवेणिका । मत्स्यवेधन यन्त्रे स्याद्वडिशं बडिशास्त्रियाम् ||३४|| आनायो ना च जालं स्यान्मीने वैसारिणो झषः । पृथुरोमा च मत्स्यश्च विसारः शकली पुमान् ॥३५॥
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हिन्दी - (१) अर्ध नौकाकार सेचनी को 'अर्धनाव' कहते हैं नपुं० । (२) नौका के सूत्रधार 'नाव चलाने वाले' को 'नाविक और कर्णधार' कहते हैं पु० । (३) नौका व्यवस्था संचालक के दो नाम -- पोतवाह १, नियामक २ पु० । (४) पार जाने वाले के तीन नाम - पारग १ पारीण २, अवारपारीण ३ त्रिलिङ्ग । (५) नौका से पार करने वाले के तीन नाम - सांयात्रिक १ अस्त्री०, नौकावणिक् २, पोतवणिक्, ३ पु० । ( ६ ) नौका से कचरा निकालने के पात्र के दो नाम -अनि १ स्त्री०, काष्ठकुद्दाल २ पुं० । (७) निर्मल के तीन नाम प्रसन्न १, अच्छ २ निर्मल ३ त्रिलिङ्ग । (८) मलिन जल के चार नाम - समल १ कलुष २ अनच्छ ३, भविल ४ त्रिलिङ्ग । (९) गंभीर के पांच नाम - निम्न १, गभीर २ गम्भीर ३ अंगाव ४, अस्ताघ ५ त्रिलिङ्ग । (१०) धीवर के तीन नाम -- घीवर १, दाश २, कवर्त ३ पु० । (११) मछली रखने का जो पात्र है उसके दो नाम - मत्स्याधानी १ कुवेणिका २स्त्री. ।
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