SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयकाण्डम् २३६ वणिग्वर्गः १० शशोणं शशलोमानि ऊर्गायु मेष कम्बलः ॥३८॥ चिरैमेही च वालेय खर रासभ गर्दभाः। चक्रोवान् शकुकर्णोऽपि तथा वैशाखनन्दनः ॥३९॥ उष्ट्र-क्रमेलको तुल्यौ करभस्वस्य बालकः । नैगमो वाणिनः सार्थवाही वैदेहको वणिक् ॥४॥ क्रयविक्रयिकः पण्याजोव आपणिकस्तथा । वस्तु गृह्णाति मूल्येन क्रयिकः क्रायिकः क्रयी॥४१॥ विक्रीणीते स विक्रेता तथा विक्रयिकः स्मृतः । वणिज्या चाऽपि वाणिज्यं वणिनां कर्म कीर्त्यते॥४२॥. (१) शशला के लोम के दो नाम- शशोर्ण १ शशलोमक २ नपुं०। (२) मेषादि लोम के दो नाम-ऊर्णायुम् [ऊर्णा स्त्रो०] १ मेषकम्बल २ [रल्लक पक्ष्नकम्बल को भी कहते हैं] पु० । (३) गदहे के आठ नाम-चिरमेह। १ वालेश २ खर ३ रासभ ४ गर्दभ ५ चक्रीवान् ६ शकुवण ७ वैशाखनन्दन८ पु० । (४)ऊँट के दो नामउष्ट्र १ क्रमे ठक २ पु० । (५) ऊँट के [त्रिहायण] वच्चे का एक नाम- करभ १ पु० । (६) व्यापारी के आठ नाम- नैगम १ वाणिय २ सार्थवाही ३ वैदेहक ४ वणिक् ५ कपविक्रयिक ६ पण्याजोव ७ आपणिक ८पु० । (७) मूल्य (कीमत) से सामान खरीदने वाले के तीन नाम-क्रयिक १ ऋयिक २ क्रयो ३ पु० । (८) वेचने वाले के दो नाम-- विक्रेता १ विक्रयक २ पु० । (९) व्यापार के दो नाम-वाणिज्या १ स्त्री०, वाणिज्य २ नपुं.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy