________________
-
द्वितीयकाण्डम्
१७५
मानववर्गः ७ वस्त्रयोनिः कृमी रोम त्वक् फलं त्रिषु ते दश ॥९७॥ कासिं बादरं फालं कौशेय कृमिकोशजम् । चाल्क क्षौम 'रावन्तु मृगरोमोद्भवाऽम्बरम् ॥९८॥ नववस्त्र निष्प्रवाणि तन्त्रकाऽनाहते अपि । क्लीबे तद्गमनीयं तद् यद् धौताऽऽच्छादनद्वयम् ।।९९॥ क्षौमे "दुकूलं, पत्रोणे धौत कौशेयवाससि । तसर त्रसरौ दिव्य सूत्रनिर्मितमम्बरम् ॥१०॥ दशाः स्त्रियां भूमनि स्यु वस्त्रस्य प्रान्तयो योः । पटच्चरं जीर्णवस्त्रं कन्या स्त्री स्यूत वाससि ॥१०१।।
(१) वस्त्र चार वस्तुओं से होता है- कृमिकोश १ रोम २ त्वच् ३ फल ४ । (२) कपास से बनाये गये वस्त्र के तीन नाम- कार्पास १ बादर २ फाल ३ नपुं० । (२) कृमिकोष से निर्मित वस्त्र के दो नाम- कौशेय १ कृमिकोशज २ नपुं० । (४) अतसो आदि के त्वचा से निर्मित वस्त्रों के दो नाम-वाल्क १ क्षोम २ नपुं० । (५) मृगलोम से निर्मित वस्त्र के दो नामराव १ मृगरोभोद्भव २ नपुं०। (६) छेद भोग क्षाल न हीन वस्त्र के चार नाम नववस्त्र १ निष्प्रवाणि २ तन्त्रक ३ अनाहत ४ नपुं० । (७) पहनने ओढने के वस्त्र का एक नाम- उद्गमनीय १ नपुं० । (८) रेशम के वस्त्र का एक नाम- दुकूल १ नपं । (९) कृमि कोष निर्मित वस्त्र का एक नाम-पत्रोर्ण १ नपं०। (१०) चमकीले सूतों से बने कपडे के दोनाम-तसर १ त्रसर २ पु० । (११) कपड़ों के किनारे का एक नाम-दशा १ बहुवचन स्त्रो० । (१२) पुराने कपड़ों का एक नाम-पटच्चर १ नपुं०। (१३) पुराने वस्त्रों को एक साथ सीकर रक्खा जाय अथवा रजाई का एक नाम-कन्था १ स्त्री० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org