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द्वितीयकाण्डम् १८४
वंशवर्गः ८ सन् कोविदो बुधो धोरः परिः प्राज्ञो विचक्षणः ॥५॥ दूरदर्शी श्रोत्रियेस्तु छान्दसो वेदपारगः । स्याद्वादी स्यादाईकोऽथ 'वेदान्त्युपनिषद्विदि ॥६॥ मीमांसको यो मीमांसा ज्ञानवान्सांख्यकापिलौ । वैशेषिकंज्ञः काणादी न्यायो नैयायिक स्तथा ॥७॥ सौगतः शून्यवादीस्या च्चार्वाकाधास्तु तद्विदाः । उपेत्याऽधीयते यस्मा दुपाध्यायो गुरुस्तु यः ॥८॥
मन्त्रदाता पितावाऽपि यष्टोssदेष्टावती मखे । १६ सरि १७ प्राज्ञ १८ विचक्षण १९ दूरदर्शी २० पु.।
१) श्रोत्रिय के तीन नाम-श्रोत्रिय १ छान्दस २ वेदपारग ३ पु. (२) जैन के दो नाम-स्थाहादी १ माहेक (आर्हत) २ पु० । (३) उपनिषदवेत्ता के दो नाम-वेदान्ती १ उपनिषद्वित् २ पु०। (४) मीमांसा जानने वाले के दो नाम-मीमांसक १, मीमांसाज्ञानवान २ पु० । (५) सांख्य के दो नान-सांख्य १, कापिल २ पु० । (६) वैशेषिक वेत्ता के दो नाम-वैशेषिकज्ञ १, काणादी २ पु० । (७) न्यायवेत्ता के दो नाम-न्यायो १, नैयायिक २ पु० । (८) शून्यवादी विशेष के दो नाम-सौगत १, शून्यवादी २ पु० । (९) शून्यवादी विशेष के एक नाम-चार्वाक आदि पु० । (१०) जिनके यहां जाकर पढा जाय उनके एक नाम-उपाध्याय (अध्यापक) १ पु० । (११) मन्त्रदाता के एक नाम-गुरु १ (पिता आदि बड़े को भी गुरु कहते हैं) पु.। (१२) यजमान के पांच नाम-यष्टा १, आदेष्टा २, व्रती ३, साजक है, यजमान ५ पु० ।
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