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द्वितीयकाण्डम्
२२३
अवमर्दो रणध्वाने पहाडम्बरौ समौ ।
उत्पात स्तूपसर्गोऽथ मर्यादा स्खलनं छलम् ॥ १२४ ॥ छलादाक्रमणं यत्त-दभ्यवस्कन्दनं मतम् । आक्रोशपूर्वके शब्दे 'क्रन्दनं विजये जयः ॥ १२५॥ तिरोहितस्तु नष्टः स्याद् युद्धभङ्गः पराजयः । पराजितः पराभूतो विजितो निर्जित स्त्रिषु ॥ १२६॥ "वरनिर्यातनं वैर-शुद्धि र्वैरविशोधनम् । प्रतीकारोऽथ संद्रा Isपक्रमौ च पलायनम् ॥ १२७॥
क्षत्रियवर्गः ९
(१) परसैन्य द्वारा देश के लूट पाट के दो नाम - पीडन १ नपुं०, अवमर्द २ पु० । (२) युद्धस्थल में वाथ बजाने के तीन नाम - रणध्वान १ पटह २ आडम्बर ३ पु० ( आडम्बरः सहारम्भे घनगर्जित सूर्ययोः) | (३) उत्पात के दो नाम उत्पात १ उपसर्ग २५. । (४) छल के दो नाम- मर्यादास्खलन १ छल२ नपुं० । (५) छल से आक्रमण का एक नाम - अभ्यवस्कन्दन १ नपुं० । ( ६ ) निन्दावचनों से उत्तेजित करने का एक नाम - क्रन्दन १ नपुं० । (७) विजय के दो नाम - विजय १ जय २ पु० । (८) छुप गए के दो नाम - तिरोहित १ नष्ट २ पु० । (९) पराजय के दो नाम युद्धभंग (भङ्ग) १ पराजय२ पु० । (१०) हारे हुए के चार नाम पराजित २ पराभूत २ विजित ३ निर्जित ४ त्रि० । (११) बैहन विशोषन (वैर प्रतिबदल) के चार नाम - बैरनिर्यातन १ वैरविशोषन २ नपुं०, बैरशुद्धि ३ स्त्री०, प्रतिकार ४ पु० । (१२) संग्राम से भागने के तीन नाम - संदावर उपक्रम २ पु०, पलायन ३ नपुं.
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