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द्वितीयकाण्डम्
नगरवर्गः २ वेदिस्तु वेदिका द्वारे द्वाः प्रतीहार इत्युभौ ॥१८॥ आरोहण तु सोपानं निःश्रेण्यामधिरोहिणी । गोपुरं स्यात्पुरद्वारं बहि रेऽस्त्रि तोरणम् १९॥ पुरोभागे समतले ह्यङ्गने चत्वरा जिरे । मतो हस्तिनखः कूटेऽवतारार्थे पुरादहिः ॥२०॥ वेश्मभूर्वास्तुरस्त्रीस्या दिल्लग्रामस्तु पक्वणः ।
संकराऽवकरक्षेप्त्यां सम्माजन्यैवशोधनी ॥२१॥ १ वेदि (वेदी) २ स्त्री० [पण्डित अथ में वेदिः पुं०] । (७) द्वारपाल के दो नाम- प्रतीहार १ द्वार [द्वाः २ स्त्रो.पुं०, । (८) सीढी के दो नाम-आरोहन १ सोपान २ नपुं० । (९) पङ्क्तिबद्ध सोपान के दो नाम-निःश्रेणी १ अधिरोहिणी २ स्त्री० । (१०) न र द्वार के दो नाम-गोपुर १, पुःद्वार २ नपुं० । (११) गृहद्वार से बाहर चौराहे आदि स्थल पर स्वागतार्थ द्वार का एक नाम 'तोरण १ अस्त्री० ।
हिन्दी-[१] गृह आदि के आगे के समतल भूमि के तीन नाम-अङ्गन [अङ्गण] १, चत्वर २, नपुं० । अजिर ३ नपुं० । [२] नगर के दरवाजे परे जो मृतक्ट है उसमें उससे उतरने के लिए क्रम बद्ध मृत्सोपान 'हो तो, उसका नाम 'हस्तिनख' नपुं० । [३] वांस भूमि के दो नाम-वेश्मभू१ स्त्री०, वास्तु २ अस्त्री० । मिल्ल ग्राम का एक नाम-'पक्कण' पु० । [५] डा कूकचरा के दो नाम-संकर १ अवकर २ पु० । [६] झाडू के दो नाम-संमार्जनो १ शोधनी २ स्त्री० [७] ग्राम
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