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तृतीयकाण्डम्
३४१
नानार्थवर्गः ३
वृषभे सुकृते श्रेष्ठे मूषिके शुक्रले वृषेः ॥२३९॥ कलिद्रो व्यवहारोऽक्षी द्यूताङ्गचक्रकर्षयोः । क्लीबं स्यादिन्द्रिये प्रेक्षा प्रज्ञा नृत्येक्षणे, अथ ॥ २४०॥ कुड्मलाथैीघ दिव्येषु कोषोऽस्त्री खड्गगोपने । के वार्ता करीषाग्न्यो र्ना कुल्या मात्रकेऽस्त्रियाम् ॥ २४१ ॥ मर्दने प्रेषणे प्रैष स्विट् शोभा रश्मिप्रग्रहौ । अभीषु सामिषं तु स्यादुपादानेऽस्त्रिया मथ ॥ २४२ ॥ निः स्नेहाsमसृणारुक्षः शिरोवेष्ट किरीटयोः । उष्णीषं स्यान्निष्कृटेऽपि कात्स्न्येन्य क्षो.... इतिषान्ताः ।
(१) 'वृष' धर्म श्रेष्ठ मूषिक बाहुवो यवान् वृषभ शृङ्गी पुंभेद राशिभेद में पु० । (२) 'अक्ष' कालिदु (बहेड़ा) कर्ष (आय व्यय को चिन्ता) तुष चक्र शकट व्यवहार आत्मज्ञ पाशक में पु०, तूथ ( तूतिया) सौवर्चल ( लवण मे :) इन्द्रिय में नपुं० । (३) 'प्रेक्षा' बुद्धि नृत्येक्षण में स्त्री० (४) 'कोष (कोश ) ' कुडमत्र अर्थसंघात दिव्य खङ्गगोपन पात्र जातिकोश पैशो शब्दादिसंग्रह में पु० नपुं० । (५) 'कर्पू:' वार्ता करीषाग्नि में पु०, कुल्या ( कृत्रिम नदी) में स्त्रो० । (६) 'प्रैष' मर्दन प्रेषक क्लेश उन्माद में पु० । (७) 'विष' शोभा रुचि वाक् कान्ति में स्त्री० । (८) 'अभषुः ' रश्मि प्रग्रह अश्वादिरज्जु तथा लगाम में पु० । (९) 'आमिष ' उपादान (इन्द्रियों का विषयों से निवर्त्तन) भोग्यवस्तु संभोग उत्कोच (आयन भेट घूम) 'पलल में पु० नपुं० । (१०) 'रूक्ष' निःस्नेह (अप्रेय ) अमसृण में त्रि० । (११) 'उष्णीष (उष्णिक् ) ' शिरोवेष्टन ( पगडी साका) किरिट (मुकुट) में नपुं० । (१२) 'न्यक्ष' निकृष्ट काल्स्न्य परशुराम में त्रि० । इति षान्ताः ।
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