SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमकाण्डम् ३१ व्योमवर्गः ३ प्रालेयं मिहिका वाऽपि हिमानी हिमसंचयः । शीतं गुणे तदर्था ये सुषीमः शिशिरो जडः ॥२९॥ तुषार शीतलौ शीत हिमौ तल्लिङ्ग वाचकाः । स्त्रियां दिक्hart काष्ठा हरिदाशाऽथ तद्भिदाः ||३०| पश्चिमादि प्रतीची स्या, दवाची दक्षिणा मता । पूर्वाप्राच्युत्तरोदीची शदिश्य तु दिग्भवे त्रिषु ॥३१॥ पूर्वे भवतु प्राचीन मर्वाचीनं ततः परम् । अर्वाचीन मुदीचीनं भवार्थे सर्व एव ते ॥ ३२॥ हिन्दी - (१) राशि के उदय का एक नाम - लग्न १ नपुं । (२) हिम के सात नाम - अवश्याय १ तुषार २, नीहार ३ पु०, तुहिन ४ हिम ५ प्राय ६ नपुं० मिहिका ७ स्त्री० । ( ३ ) हिम समूह के दो नाम - हिमानी १ स्त्री०, हिमसंचय २ पुं० । ( ४ ) गुणबाचक शोत नपुंसक है इस अर्थ में आने वाले सात नामसुषीम १ शिशीर २ जड ३, तुषार ४ शीतल ५ शीत ६ हिम ७ ये अन्यलिङ्ग हैं । (५) दिशा के पांच नाम - दिश (दिशा) १, ककुभ् २, काष्ठा ३ हरित् ४ आशा ५ स्त्रो० । (६) प्रत्येक दिशा के दो दो नाम-पश्चिम दिशा के पश्चिमा १ प्रतीची २ दक्षिण दिशा के - अवाची १ दक्षिणा २ पूर्वदिशा के प्राची १ पूर्वा २ उत्तर दिशा के - उत्तरा १ उदोची २ स्त्री० । (७) पहले या पूर्व में जो हुआ हो वह प्राचीन है, अभी २ या पोछे जो हो उसको अर्वाचीन कहते हैं; समुद्र के दक्षिण तीर की 'अर्वाचीन' और उत्तर तीर भव की 'उदीचन' • संज्ञा है त्रिलिङ्ग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016064
Book TitleShivkosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherKarunashankar Veniram Pandya
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy