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तृतीय काण्डम्
नानार्थवर्ग:३ कामिनो वज्र तडितो हादिन्यथ च वाहिनी ॥१३३॥ सैन्यं तरङ्गिणी सेना मूर्ख नीची पृथग्जैनः । चित्रभानुस्तु सूर्यऽग्नौ भानू रश्मि दिवाकरः ॥१३४॥ भूतात्मा धातृदेहौस्तो वाऽक्षिच्छद्रमार्गयोः । ग्रहदेहः प्रभावस्त्विइ धामानि पिशुनः खले ॥१३५।। गुहयेऽकार्येऽपि कौपीनं क्षणे पर्व तिथापि ।
अवकाशे स्थितौ स्थान निर्धेनं कुलनाशयोः ॥१३६॥ (१) कामिनो' भीरु और वन्दा (अर्थात् वृक्ष विशेष अथवा विदारीकन्द) में स्त्रो०, कामुक चक्रवाक पारावत् में पु० 'कामी' । (२) 'हादिनी' वज्र और विद्युत् में स्त्री० । (३) 'वाहिनी' सैन्य तरङ्गिणी (स्रवती) सेना मे स्त्रो० । (३) 'पृथग्जन' (पृथकृगेजन) मूर्ख नोच में पु०। (५) 'चित्रभानु' सूर्य वह्नि में पु० । (६) 'भानु' रश्मि दिवाकर में पु० । (७) 'भूतात्मा' धाता देह में पु० (८) 'वर्ल्स' नेत्रच्छद मार्ग में नपुं० । (९) 'धामन्' गृह देह (जम्न) प्रभाव (शक्ति) स्विट (तेजस्) में नपुं०। (१०) 'पिशुन' कपिवक्र काक में पु०, पृक्का में स्त्री०, कुङ्कुम में नपुं०, खल और सूचक (चुगलखोर) में त्रि० । (११) 'कौपान' गुह्यचीर अकार्य में नपुं० । (१२) 'पर्व' उत्सव प्रन्थि प्रस्ताव विषुव आदि अमावस्या और प्रतिपद का संधि तथा तिथिपञ्चकान्तर अर्थात् चतुर्दश्यष्टपी अमावस्यच पूर्णि: । इन अर्थों में नान्त नपुं० । (१३) स्थान' वृद्धि क्षयेतर सादृश्य अवकाश स्थिति में नपुं०, उचित अर्थ में अव्यय । (१४) 'निधन' कुल नाश में नपुं० ।
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