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'द्वितीयकाण्डम्
२४९ अन्त्यवर्णवर्गः ११ 'शिक्यं काचो वरत्रातु वीं नन्नी स्त्रियामिमाः।
उपानत्पादुका पादूः कशात्वश्वादि ताडनी ॥३६॥ पाषाण भेदनस्टंको भनी चर्मप्रसेविका । काष्ठादि भेदनी त्वारा शलाका तूलिकैषिकाः । ३७।। केषः स्यानिकषः शाणः कर्तरीतु कृपाणिका । "मृषी त्वावर्तनी मृषा वश्चनः पत्रदारणः ॥३८॥
हस्तकुट्टः शिलाकुट्टोऽयोधनः कूटमस्त्रियाम् । (१) सीका(रस्सी का फन्दा, जिस पर दही आदि टांगा हुआ रहता है) के दो नाम-शिक्य १ नपु०, काच २ पु० । (२) चमड़ा से बने रस्सी के तीन ताम-वस्त्रा १ वध्री२ नध्री३स्त्री० । (३) जूते के तीन नाम-उपानत् १ पादुका२ पादू ३ स्त्री० । (४) चाबूक का एक नाम-कशा १ स्त्री० । (५) छेनी (जिससे लोहे काटे जाय) का एक नाम--टन्क १ पु० । (६) भाथी के दो नाम-भस्रा १ चर्मप्रसेविका २ स्त्री० । (७) लकड़ी चीरने का औजार का एक नाम--आरा १ स्त्रो०। (८) चित्र बनाने की लेखनो के तीन नाम--शलाका १ तुलिका २ एषिका ३ स्रो० । (९) स्वर्णपरीक्षण की कसौटी के तीन नाम-कष १ निकष२ शाण३ पु०। (१०) कैचो के दो नाम-कर्तरी १ कृपाणिका २ स्त्री० । (११) सुवर्ण गलाने के मिट्टीपात्र के तीन नाम-मूषी १ आवर्तनी २ मूषा ३ स्त्री० । (१२) सुवर्ण पात्र छेदन की कैंची के दो नाम-व्रश्चन १ पत्रदारण २ पु० । (१३) हथोड़ा हथौड़ी के दो नाम-हस्तकुट्ट १ शिलाकुट्ट २ पु० । (१४) एरण (नेहाई) के दो नाम-अयोधन १ पु०, कूट २ पु०, नपुं० ।।
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