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द्वितीयकाण्डम्
मानववर्गः ७ जामाता कन्यका कान्तो भागिनेयः स्वसुः सुतः। मातामहो मातृतातः पित्तातः पितामहः ॥३०॥ प्रमातामह आख्यातः पिता मातामहस्य यः । पिता पितामहस्य स्यात्प्रपितामह नामवान् ॥३१॥ उभयोः पितरोवृद्ध विशेषणविशेषितौ । सनाभिस्तु सपिण्डः स्याब्दन्धु संघस्तु बन्धुता ॥३२॥ संगोत्रे बान्धवोबन्धु तिः स्वः स्वजनोऽपि च ।
सहो देरे सगर्व्यः स्यात्सोदर्यः सहजस्तथा ॥३३॥ . (१) कन्या के पति का एक नाम-जामाता (जामात) १ पु० । (२) बहन के पुत्र का एक नाम-भागिनेय १ पु० । (३) माता के पिता का एक नाम-मातामह १ पु० । (४) पिता के पिता का एक नाम-पितामह १ पु०। (५) मातामह के पिता का एक नाम-प्रमातामह १ पु. । (६) पितामह के पिता का एक नाम-प्रपितामह १ पु. । (७) प्रमातामह के पिता का एक नाम-वृद्धप्रमातामह १ पु० , प्रपितामह के पिता का एक नाम--वृद्धप्रपितामह १ पु० । (८) सात पोढो के मध्यवालो के दो नाम--सनाभि १, सपिण्ड २ पु० । (९) बन्धुसमुदाय का एक नाम-बन्धुता १ स्त्री० । (१०) समान गोत्र वालों के छ नाम--सगोत्र १, बान्धव २, बन्धु ३, स्व ४, स्वजन ५, ज्ञाति ६ स्त्री० । (११) सगे भाई के पांच नाम--सहोदर १, सगh २, सोदर्य ३, सहज ४ पु० ।
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