Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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47 शुभकामना बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. शेखरचन्द्र जैनने अपने संपादकीय विचारों द्वारा समाजमें क्रान्ति लाने का कार्य "तीर्थंकर वाणी' के माध्यम से किया। वहीं 'श्री आशापुरा माँ जैन अस्पताल के जरिये करुणा के स्रोत को । प्रवाहित किया है। माँ सरस्वती की कृपा आप पर बरस रही है। ___ आप चिरायु व स्वस्थ रहकर निरंतर चहुँ और प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे यही शुभकामनायें।
जे. के. संघवी पूर्व संपादक-शाश्वत धर्म, बीकानेर
. मंगल शुभेच्छा __ विश्वस्तरीय धर्म प्रभावना, मानवसेवा, समाजसेवा एवं साहित्य में आपका योगदान उत्तम एवं प्रशंसनीय है।
आपने राष्ट्र, राज्य, समाज का नाम गौरवान्वित किया है। वीरप्रभु आपको लक्ष सिद्धि करने की दिशा में अग्रसर होने के लिए शक्ति प्रदान करे।
सुरेन्द्रकुमार डी. जैन (अहमदाबाद)
{ मेरे आदरणीय ___डॉ. शेखरचन्द्रजी जैन एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं, जिन पर मां सरस्वती की असीम कृपा है। उनसे मेरा परिचय मेरे भैय्या (श्री रविन्द्रकुमार जैन / श्रीमती अर्चना जैन दुर्ग) की शादी के बाद हुआ। वैसे तो वे मेरे लिए सदा ही आदरणीय रहे हैं मगर जब मैं खुद पी-एच.डी कर रही थी तब उन्होंने हर तरह से मेरा उत्साह वर्धन, मार्गदर्शन किया जिसके लिए में सदा आभारी रहूंगी।
डॉ. मनु रविकुमार जैन (विदिशा)
- चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी डॉ. शेखरचंदजी एक व्यक्ति ही नही गोलालारीय जैन समाज के सूरज हैं जो सदैव चमकते रहते हैं। __ मैं डॉ. शेखरचंदजी को अपनी बाल्य अवस्था से जानता हूँ। मेरे पूज्य ताऊजी पंडित भुवनेन्द्रकुमारजी जैन जो एस.पी. जैन गुरुकुल हायर सेकण्डरी स्कूल में छात्रावास अधीक्षक थे, उनके सान्निध्य में डॉ. साहब का कुछ समय पठन पाठन चला है और इसी गुरु शिष्य परम्परा को निभाते हुए डॉ. साहब अक्सर खुरई आने पर हमारे निवास स्थान में जरूर पधारते थे। अपने गरु के प्रति उनका आदर भाव देखते ही बनता था।
डॉ. साहब एक प्रेरक वक्ता, विद्वान, सहयोगी. स्नेही और जैन समाज के ऐसे व्यक्ति हैं जो परंपरावादी विचाराधारा एवं आधुनिकता में जो तालमेल हो सकता है उसकी एक कडी हैं। __आज भी डॉ. साहब अपने लोगों से बुन्देलखण्डी भाषा में बात करने में सहजता महसूस करते हैं वही दूसरी
ओर भारत एवं भारत से बाहर डूबी आधुनिकता से उन्हें परहेज नहीं। __उनके सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ के माध्यम से मुझे भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का सुअवसर मिला जिसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ।
प्रा. डॉ. अनिल जैन (भिलाई) ।
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