Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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| सिद्धान्त को भी समझना होगा। ___ सर्वप्रथम यह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि क्लोन किसी भी जीव का या डोनर-पेरेन्ट का अंश नहीं है। क्लोन का अलग अस्तित्व है और डोनर-पेरेन्ट का अलग। जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं कि हमारे शरीर में स्थित प्रत्येक कोशिका भी अपने आप में एक परिपूर्ण शरीरयुक्त स्वतन्त्र जीव है तथा हमसे प्रत्येक दृष्टि में भिन्न है। उसका वैसा ही अलग अस्तित्व है जैसाकि आपका और हमारा। अतः जब प्रत्येक कोशिका का अलग अस्तित्व है तो उससे विकसित भ्रूण तथा फिर भ्रूण से विकसित क्लोन डोनर-पेरेन्ट का अंश कैसे हो सकता है? अतः क्लोन अपने आप में डोनर-पेरेन्ट से बिल्कुल अलग अस्तित्व वाला जीव है। उसका आयुष्य, उसकी भावनायें तथा उसका सुख-दुख भी अपने डोनर-पेरेन्ट से बिल्कुल भिन्न होगा। यह बात डॉली (जो कि भेड़ का क्लोन है) के गर्भधारण करने तथा फिर उसके माता बनने से और अधिक स्पष्ट हो गई है। ___ अभी मनुष्य का क्लोन तैयार नहीं किया जा सका है। लेकिन यहां हम यह मानकर चलें कि मनुष्य का क्लोन भी तैयार किया जा सकता है। मानों कि मनुष्य के दो क्लोन तैयार किये गये। दोनों की शक्ल-सूरत एक जैसी ही है। यदि एक क्लोन को दूसरे की अपेक्षा ज्यादा अच्छा खाने पीने को मिले तथा अच्छा अनुकूल वातावरण मिले तो निश्चित रूप से बड़े होने पर दोनों के व्यक्तित्व में अन्तर आ जायेगा। दोनों का विकास अलग-अलग होगा ही। और यदि यह मानें कि दोनों को समान वातावरण मिले, दोनों को विकास के भी समान अवसर मिलें तो भी दोनों का व्यक्तित्व अलग-अलग ही होगा, मात्र शक्ल-सूरत ही एक जैसी होगी। ___ आज भी हम देखते हैं कि दो जुड़वा भाई शक्ल-सूरत में एक से होते हैं, दोनों में अन्तर कर पाना मुश्किल होता है, फिर भी उनमें से एक अधिक पढ़-लिख जाता है तथा दूसरा कम पढ़ा-लिखा रह जाता है। एक सर्विस करने लगता है तथा दूसरा निजी व्यवसाय। आगे चलकर उनकी जिम्मेदारियां भी अलग-अलग हो जाती हैं जिससे उनके व्यवहार में भी काफी अन्तर हो जाता है। इस प्रकार दो एक सी शक्ल वाले भाईयों का व्यक्तित्व । भी अलग-अलग बन जाता है। इसी तरह दो एक जैसे क्लोन या क्लोन तथा डोनर-पेरेन्ट के बीच भी अन्तर
रहेगा।
दूसरा प्रश्न क्लोन के जन्म के प्रकार को लेकर है। यह सही है कि बिना नर के सहयोग के भी जीव पैदा किया जा सकता है। मात्र मादा द्वारा भी जीव पैदा हो सकता है, लेकिन इस स्थिति में पैदा होने वाला क्लोन (जीव) मादा ही होगा, नर नहीं। इस प्रकार जो भी डोनर-पेरेन्ट होगा वही क्लोन भी होगा। यदि डोनर-पेरेन्ट नर है तो क्लोन भी नर होगा और यदि डोनर पेरेन्ट मादा है तो क्लोन भी मादा ही होगा। स्तनधारियों के क्लोन बनाने की प्रक्रिया में यह बात ध्यान देने योग्य है कि क्लोन के भ्रूण को मादा के गर्भाशय में रखा जाता है। तत्पश्चात् गर्भाशय के अन्दर ही बच्चे का विकास होता है तथा गर्भकाल पूरा होने के बाद ही क्लोन बच्चा पैदा होता है। यहां गर्भ की प्रक्रिया को छोड़ा नहीं गया है। अतः जैनधर्म में जन्म के आधार पर गर्भ आदि जो भेद किये गये हैं, वहां कोई विसंगति नहीं आती है।
जहां तक स्तनधारी जीवों में बिना नर के क्लोन तैयार होने का प्रश्न है, यहां एक बात यह अवश्य ध्यान रखनी चाहिए कि मादा के अण्डाणु मात्र से ही जीव-क्लोन पैदा नहीं होता है, बल्कि इस अण्डाणु के केन्द्रक को । दूसरी (किसी अन्य) कोशिका के केन्द्रक द्वारा विस्थापित कराया जाता है तभी भ्रूण पैदा होता है। अतः भ्रूण . बनाने के लिए दो कोशिकाओं का होना आवश्यक है जिनमें से एक मादा का अण्डाणु तथा दूसरी कोई अन्य कोशिका होनी चाहिए। इसप्रकार दो अलग-अलग कोशिकाओं के सहयोग से ही क्लोन बनना संभव हो सका है।