Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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मृतियों के
शाश्वत जीव द्रव्य एवं शाश्वत पुद्गल द्रव्य का अस्तित्व हमें एक प्राणी में नजर आने लगे तब वह समझना चाहिए कि जीव एवं पुद्गल का भेद समझ में आया है। जैन दर्शन में इस समझ को भेद विज्ञान कहा जाता है। जैसे हार एवं कंगन की पर्याय के बदलने की बात एवं सोने की शाश्वतता की बात करना कठिन नहीं है उसी ! तरह एक जीव का पुरुष पर्याय से मरण होकर नवीन स्त्री पर्याय में जन्म लेने की बात समझना कठिन नहीं है । ! ऐसी स्थिति को हम सरलता से समझ लेते हैं कि सुरेश की मृत्यु हुई व संगीता के रूप में उसी जीव का पुनर्जन्म हुआ । किन्तु कठिन बात यह समझना है कि सोना अपने आप में कई पुद्गल परमाणुओं का समूह है व यह समूह (यानी, सोना) शाश्वत नहीं है : इस समूह में जो पृथक्-पृथक् पुद्गल परमाणु हैं वे शाश्वत हैं प्रत्येक पुद्गल परमाणु अपने आप में उसी तरह सोना नहीं है जिस तरह प्रत्येक ईंट अपने आप में मकान या दुकान नहीं होती है। उसी तरहसे आत्मा की अपेक्षा कठिन बात यह समझना है कि जिसे हम सामान्यतया 'जीव' कहते हैं - जो 'जीव' सुरेश के शरीर रूप में था व उससे निकलकर नये संगीता के रूप में प्रकट हुआ - वह 'जीव' जीव द्रव्य ' व कई-कई वर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का समूह है। यह समूह शाश्वत नहीं है। पृथक्-पृथक् रूप से जीव द्रव्य भी शाश्वत है व कर्म-वर्गणा का प्रत्येक पुद्गल परमाणु भी शाश्वत है। जीव एवं कर्म-वर्गणा को मिलाकर समूह रूप 'जीव' को शाश्वत जीव द्रव्य मानना एक बड़ी भूल होगी। इस भूल को निकालने हेतु ही जैनाचार्यों ने विस्तार से समयसार एवं बृहद् द्रव्य संग्रह जैसे ग्रंथों में त्रिकाली ध्रुव ( शाश्वत ) जीव द्रव्य को रेखांकित किया है।
प्रश्न 7 : जीव के साथ रहने वाला शरीर जीव नहीं है यह हमारे समझ में आता है। जीव के साथ रहने वाली कर्म वर्गणा जीव द्रव्य नहीं है यह भी हमारे समझ में आता है । किन्तु जीव के साथ रहने वाले क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष आदि भाव जीव द्रव्य से भिन्न हैं या अभिन्न?
उत्तर : यह प्रश्न अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है व कई विधियों से मर्म समझने की आवश्यकता है। 'हां' या 'नहीं' उत्तर से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा ।
भौतिक विज्ञान में भी इसी तरह की स्थिति आती है जिसका समाधान करते हुए यह ध्यान में रखा जाता है कि प्रश्न का प्रयोजन क्या है। स्वच्छ विशाल झील में जो पानी दिखाई देता है वही झील का पानी झील से एक बर्तन में निकालने पर नीला नहीं दिखाई देता है। वहां भी यह प्रश्न बनता है कि यह नीलापन किसका? यदि पानी का रंग नीला होता है तो बर्तन में भी वैसा ही दिखना चाहिए था । यदि झील से सारा पानी निकल जाये तो झील भी नीली नहीं दिखाई देती है । अतः झील की जमीन का रंग भी झील के पानी के नीलेपन का कारण नहीं भी है।
इसी प्रकार सूर्य का रंग दोपहर को सफेदी लिए हुए होता है व प्रातःकाल एवं सन्ध्या को लालिमा लिए हुए होता है। क्या सूर्य बदल जाता है ? वस्तुतः जो कुछ हमें दिखाई देता है वह न केवल सूर्य अपितु वायुमण्डल आदि के कई तरह के प्रभाव सहित सूर्य दिखाई देता है। जिस समय भारत में सूर्यास्त होते समय सूर्य लाल दिखाई देता है उसी समय वही सूर्य लन्दन में दोपहर के सूर्य के रूप में सफेद चमकीला दिखाई देता है । अतः लालिमा सूर्य की है या नहीं? या सूर्य का रंग लाल है या नहीं ? इस तरह के प्रश्नों का उत्तर मात्र 'हां' या 'ना' से समझ में नहीं आ सकता है।
इस वर्णन का सारांश यह है कि दो या दो से अधिक पदार्थो की सम्मिलित 'पर्याय' में कुछ ऐसी विशेषताएं हो सकती हैं जो उनमें से किसी भी पदार्थ में न हो । भौतिक विज्ञान की परंपरा ऐसी स्थिति में सदैव यह जानने की रहती है कि कुल मिलाकर पानी नीला क्यों दिखाई दे रहा है या सूर्य लाल क्यों दिखाई दे रहा है । भौतिक विज्ञान इसमें समय खर्च नहीं करता है कि सूर्य लालिमा युक्त होता है या नहीं।