Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
View full book text
________________
376
समितियों के बालापन | होता है जिसके हवा में जलने से कार्बन डाइआक्साइड गैस एवं ऊष्मा पैदा होती है। इसके अतिरिक्त कोयले में
अन्य कोई तरह के रासायनिक पदार्थ होते हैं जो हवा से संयोग करके कई तरह की गैसें व राख बनाते हैं। किन्तु
इस जलने की क्रिया में एक भी रासायनिक परमाणु का विनाश या निर्माण नहीं होता है। कार्बन के जलने के बाद | भी कार्बन की उतनी ही मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड गैस में रहती है।
प्रश्न 2 : आपने उक्त उत्तर में बताया कि जलने की क्रिया में किसी भी रासायनिक परमाणु का विनाश या निर्माण नहीं होता है। किन्तु परमाणु विस्फोट के समय यूरेनियम परमाणुओं का विनाश होकर छोटे छोटे नये रासायनिक परमाणुओं का निर्माण होता है। वहां शाश्वत कौन है?
उत्तर : वहां ऊर्जा शाश्वत हैं। ऊर्जा, ध्वनि, प्रकाश, सोना, मिट्टी, यूरेनियम आदि कई रूपों में होती है। प्रकाश की ऊर्जा का एक कण रासायनिक परमाणु की तुलना में बहुत सूक्ष्म होता है। जैसे : हाइड्रोजन के एक रासायनिक परमाणु की ऊर्जा सोडियम से निकले हुए पीले प्रकाश के एक कण (फोटॉन) की ऊर्जा से 44.4 करोड़ गुना होती है।
प्रश्न 3 : क्या आधुनिक विज्ञान के अनुसार उक्त प्रकाश की ऊर्जा का कण सबसे छोटा कण है?
उत्तर : नहीं। सोडियम से निकले हुए पीले प्रकाश के एक कण की ऊर्जा 509 किलो हर्टज के रेडियो " ट्रांसमीटर से निकली हुई रेडियो तरंग के एक कण से एक अरब गुना अधिक होती है। यानी जिसे हम प्रकाश ऊर्जा का सूक्ष्म कण कहते हैं वह भी स्थूल है व कई सूक्ष्म कणों के रूप में बदल सकता है।
प्रश्न 4 : आधुनिक विज्ञान के अनुसार क्या ऐसा कोई छोटे से छोटा कण है जिसे आधार माना जा सकता हो व समस्त पदार्थ उस तरह के कई कणों के संयोग के रूप में समझे जा सकते हों? जैन दर्शन में इस तरह के कण को क्या कहा जाता है?
उत्तर : आधुनिक विज्ञान अभी तक इतने सूक्ष्म कण तक नहीं पहुंचा है। मूलभूत कणों (Elementary Particles), क्वार्क (Quark), ग्लुआन (Gluon) आदि का विवरण आज के भौतिक विज्ञान में पाया जाता है। नवीन अनुसंधान संभवतया कभी सूक्ष्मतम कण की तरफ ले जाने में समर्थ हो सकेंगे। प्रश्न में जिस तरह के सूक्ष्मतम मूलभूत कण की बात की गई है उसे जैन दर्शन में “अविभागी पुद्गल परमाणु" या 'पुद्गल परमाणु' या ‘परमाणु' या 'अणु' नामों से व्यक्त किया जाता है। दो या दो से अधिक पुद्गल परमाणुओं के समूह को । स्कन्ध कहा जाता है। जैन दर्शन के अनुसार प्रकाश या रेडियो तरंगों से भी अत्यन्त सूक्ष्म कर्म-वर्गणा होती है। । यह कर्म-वर्गणा भी स्कन्ध हैं, यानी एक पुद्गल परमाणु तो कर्म-वर्गणा से भी सूक्ष्म होता है। प्रश्न 5 : क्या उक्त अविनाशी पुद्गल परमाणु का अस्तित्व आधुनिक विज्ञान सम्मत है?
उत्तर : कुल मिलाकर ऊर्जा अविनाशिता का नियम एवं पुद्गल परमाणुओं की कुल संख्या की शाश्वतता का नयम संभवतया एक ही तथ्य को निरूपित करते हैं। जो कछ भी भौतिक एवं रासायनिक क्रिया में होता है वह जैन दर्शन के अनुसार पुद्गल परमाणुओं के संयोग-वियोग से होता है। यह तथ्य भी आधुनिक विज्ञान से मेल खाता है। मूलतः (पुद्गल परमाणु का) विनाशक या निर्माता कोई नहीं है जैन दर्शन का यह तथ्य भी आधुनिक विज्ञान का आधार स्तम्भ है। भौतिक पदार्थ का सूक्ष्मतम खण्ड कितना सूक्ष्म हो सकता है इसकी सीमा भौतिक विज्ञान अभी नहीं जान सका है। जब आधुनिक भौतिक विज्ञान सूक्ष्मतम खण्ड को समझ लेगा (कव? कुछ नहीं कहा जा सकता है!) व ऐसे सूक्ष्मतम खण्ड को किसी यंत्र द्वारा परख सकेगा, तब भी यदि कर्म वर्गणा जैसे स्कन्ध प्रयोगशाला में पकड़ में न आए तब यह कहने की संभावना बनती है कि पुद्गल परमाणु का अस्तित्व भौतिक ।