Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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मतियों के वातायन से । 7. जिस प्रकार जल में कतकादि द्रव्य के सम्बन्ध से कुछ कीचड़ का अभाव हो जाता है और कुछ बना रहता है उसी प्रकार उभयरूप भाव क्षयोपशम है। सर्वार्थसिद्धि 2/1/2 52 पृ. 105 8. धवल पु. 7 पृ. 92 9. ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमा-संयमाश्च। तत्वार्थसूत्र 2/15 10. णाणावरण चउक्कं ति दंसणं सम्मगं च संजलणं।
. णव णोकसाय विग्धं छब्बीस देसघादीऔ॥गो.क.40 | 11. धवल पु.13 पृ. 358 1 12. धवल पु. 1 पृ. 399 | 13. गतिकषायलिंगमिथ्यादर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्येकैकैकैकषड्भेदाः। तत्वार्थसूत्र 2/16 .
14. जोगपउत्ती लेस्सा कसाय उदयाणु रंजिया होई। 489 गो.जी. 15. जल्लेस्साइं दव्याई आदि अंति तल्लेस्से परिणामे भवति॥(प्रज्ञालेश्या पदे) 16. धवल पु. 6 पृ. 10 एवं राजवार्तिक 17. राजवार्तिक 2/7/11 पृ. 111 18. तदभावादनादिद्रव्यभवनसम्बन्धपरिणामनिमित्तत्वात् पारिणामिका इति-तत्त्वार्थवार्तिक भा. 1 पृ.297 19. प्रवचनसार गा. 93 20. प्रवचनसार गा. 95 21. तत्त्वार्थवार्तिक भाग 1 पृ. 297 22. तत्त्वार्थवार्तिक भाग 1 पृ. 298 23. सभाष्य तत्त्वार्थाधिगम सूत्र द्वितीय अ. सूत्र 7 की संस्कृत टीका 24. पञ्चास्तिकाय गा. 56 की अमृतचन्द्राचार्य कृत टीका, धवल 5/188 25. धवल पु. 6 समयसार तात्पर्यवृत्ति गा.431 पंक्ति 14-15 26. धवल पु. 6 पृ. 10 27. अन्यासाधारणा भावाः पञ्चौपशमिकादयः।
स्वं तत्त्वं यस्य तत्त्वस्व जीवः स व्यपदिश्यते।। 211 तत्त्वार्थसार 28. कावि अपुब्बा दीसिदि पुग्गलदव्यस्स एरिसी सत्ति। ..
केवलणा सहावो विणासदो जाइ जीवस्स॥ कार्तिकेयानुप्रेक्षा
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