Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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जैन दार्शनिकों की भाषा (शब्द) दृष्टि
प्रो. वृषभ प्रसाद जैन (वर्धा) इस आलेख में मेरा उद्देश्य जैन- दार्शनिकों की शब्द सम्बन्धी मान्यताओं को अर्थात् जैन दार्शनिकों के अनुसार परिभाष्य शब्द के स्वरूप को प्रस्तुत करना है। शब्द के दार्शनिक पक्ष पर विचार करने से पहले यह अत्यधिक आवश्यक हो जाता है कि हम जैन दार्शनिकों के द्वारा की गई शब्द की परिभाषाओं पर दृष्टिपात करें और उनके द्वारा शब्द की मान्यताओं को प्रस्तुत करें। इस दृष्टि से हम सर्वप्रथम सर्वार्थसिद्धि की शब्द की परिभाषा को लेते हैं- “शब्दत इति शब्दः, शब्दनं शब्दः” अर्थात् जो शब्द रूप होता है, वह शब्द है, शब्दन शब्द है । 'सर्वार्थसिद्धि' की इस व्युत्पत्तिपरक परिभाषा में दो बातें विशिष्ट रूप से सामने आती हैं- पहली यह कि शब्द रूपी अर्थात् रूपवाला होता है और दूसरी यह कि शब्द ध्वनि रूप क्रियाधर्म वाला होता है।
इसके बाद हम 'राजवार्तिक' में व्यक्त शब्द की परिभाषा को लेते हैं" शपत्यर्थमाह्वयति प्रत्याययति, शप्यते येन शपनमात्रं वा शब्दः " अर्थात् जो अर्थ का आह्वाहन करता है, अर्थ को कहता है, जिसके द्वारा अर्थ कहा जाता है अथवा शपन मात्र शब्द है । राजवार्तिक की यह परिभाषा शब्द की अर्थपरक परिभाषा है अर्थात् शब्द । के उद्देश्य सम्प्रेष्य को मूल में रखकर दी गई है। इस परिभाषा से तीन बातें सामने उभर कर आती हैं- पहली कि शब्द का उद्देश्य अर्थ को / अभिप्राय को सम्प्रेषित करना है, दूसरी कि सम्प्रेषण रूप क्रिया में शब्द कर्म-साधन के रूप में है, तीसरी कि शब्द अपनी पर्याय में ध्वनि - क्रिया-धर्म वाला है।
जैनदर्शन के ग्रन्थों में शब्द के पर्याय के रूप में "नाम" पारिभाषिक का भी व्यवहार है। जिसके द्वारा अर्थ जाना जाये अथवा अर्थ को अभिमुख करें, वह नाम कहलाता है। 'धवला' में इस नाम को ही परिभाषित करते हुए लिखा है- जिस नाम की वाचक रूप प्रवृत्ति में जो अर्थ अवलम्बन होता है, वह नाम निबन्धन है, क्योंकि उसके बिना नाम की प्रवृत्ति सम्भव नहीं है।
जैनदर्शन की एक और महत्व की मान्यता यह है कि शब्द पुद्गल की पर्याय है। पंचास्तिकाय में वर्णित है कि शब्द स्कन्धजन्य है । स्कन्ध परमाणुदल का संघात होता है और इन स्कन्धों के आपस में स्पर्शित होने से / टकराने से शब्द उत्पन्न होता है, इस ।