Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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*जैन आचार-विचारों का सूक्ष्मजीव विज्ञानकीय दृष्टिकोण
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सिद्धान्तों की सार्थकता को हम वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी समझ सकें एवं अपने आचरण में ला सकें।
(1) जमीं कंद, कंद मूल आदि गडन्त पादप पदार्थों का निषेधः
मृदा (भूमि) पादपों की वृद्धि का मूल आधार है। पादप (सभी वर्ग के पौधे) मृदा से खनिज पदार्थों का अवशोषण कर वृद्धि करते हैं। इन खनिज पदार्थों के निर्माण में सूक्ष्म जीवों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थों का निम्नीकरण कर खनिज लवण तथा वायुमण्डलीय गैंसे बनाते हैं। यदि ऐसा न होता तो भूमि पर पादप अवशेषों, जीव-जन्तुओं के शारीरिक अंगों एवं मृत जीवों का अंबार एकत्रित होता रहता और जीवों का अस्तित्व ही नहीं दिखता। सूक्ष्म जीवों के इस गुण से यह तो स्पष्ट होता ही है कि सूक्ष्मजीवों को पनपने के लिये कार्बनिक पदार्थ एवं / अथवा कुछ खनिज पदार्थ आवश्यक होते हैं। कार्बनिक पदार्थों की अल्प मात्रा में भी असंख्य जीव अपना जीवन निर्वाह कर लेते हैं। अतः ऐसी भूमि जिसमें कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में होंगे, सूक्ष्मजीवों की संख्या भी उसी अनुपात में हो सकती है। चित्र में बंजर भूमि, पौधों की जड़ों के पास की भूमि तथा जमींकंदों आदि चे चारों और की भूमि में पाये जाने वाले सूक्ष्म जीवों की संख्या को प्रदर्शित किया गया है।
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