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411 । तीर्थंकर तुल्य बताकर अहंकार किया तो उसके फल में उन्हें भी सागरों पर्यंत (एक कोड़ाकोड़ी सागर) संसार में परिभ्रमण करना पड़ा।
इन सबसे पाठकों को जहाँ उनके आदर्श जीवन से सद्गुण प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है, वहीं पापाचरण । से बचने की शिक्षा भी मिलती है। इस तरह जैनपुराण जहाँ अपने आदर्श पात्रों के उत्कृष्ट चरित्रों द्वारा पाठकों । के हृदय पटल पर, उनके समग्र जीवन पर ऐसी छाप छोड़ते हैं, ऐसे चित्र अंकित करते हैं जो मानवीय मूल्यों के विकास में तथा उनके नैतिक मूल्यों और अहिंसक आचरण में तो चार चाँद लगाते ही हैं, उन्हें रत्नत्रय की आराधना का उपदेश देकर पारलौकिक कल्याण करने का मार्गदर्शन भी देते हैं। निगोद से निकालकर मुक्ति तक पहुँचने का पथ प्रदर्शन भी करते हैं। ___पाठकगण गम जैसे कथा नायकों के आदर्श जीवन से प्रभावित होकर मानवीय मूल्यों के महत्त्व से अभिभूत
तो होते ही हैं, मानवीय कृत्य करनेवाले मानकषाई रावण जैसे खलनायकों की दुर्दशा देखकर उन दुर्गुणों से दूर रहने का प्रयास भी करते हैं।
प्रायः सभी जैन पुराणों के कथानकों में वर्तमान मानव जन्म से पूर्व जन्मों की कहानियाँ भी होती हैं। उनके माध्यम से अपने पूर्वकृत पुण्य-पाप के फल में प्राप्त ऐसी सुगतियों-दुर्गतियों के उल्लेख भी होते हैं, जिनमें लौकिक सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। इससे भी पाठक सजग हो जाते हैं, और मानवीय मूल्यों को अपनाने लगते हैं, ताकि भविष्य में उनकी दुर्गति न हो। ___ जैन पुराणों में मानवीय मूल्यों में श्रावक के आठ मूलगुणों के रूप स्थूल हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह पापों का त्याग तथा मद्य-मांस-मधु के सेवन का त्याग करना बताया गया है। इनके साथ ही सात दुर्व्यसनों का त्याग करना भी बताया गया है। वे सात व्यसन इसप्रकार हैं
जुआ आमिष मदिरा दारी, आखेटक चोरी परनारी।
ये ही सात विसन दुखदाई, दुरित भूल दुरगति के भाई॥ जुआ खेलना, माँस खाना, शराब पीना, वेश्या सेवन, शिकार करना, चोरी और परस्त्री सेवन। ये सातों व्यसन दुःखदायक हैं, पाप की जड़ हैं और कुगति में ले जानेवाले हैं।
इनके अतिरिक्त अन्याय, अनीति और अभक्ष्य का सेवन न करना भी मानवीय मूल्यों में सम्मलित हैं। काम, क्रोध को बस में रखना, इन्द्रियों के विषयों के आधीन न होना भी मानवीय मूल्यों के अन्तर्गत आते हैं। उपर्युक्त निषेध परक मानवीय मूल्यों के साथ सकारात्मक मूल्यों में दया, क्षमा, निरभिमानता, सरलता, निर्लोभता, पवित्रता, सत्यता, संयमित जीवन का होना मानव के प्राथमिक कर्तव्यों में आते हैं।
इन सबकी चर्चा प्रायः सभी पुराणों में किसी न किसी रूप में मिलती है। सर्वाधिक चर्चित और लोकप्रिय जैन पुराणों में पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, आदिपुराण, उत्तरपुराण ऐसे पुराण हैं जो गाँव-गाँव में प्रतिदिन की शास्त्र सभाओं में पढ़े-सुने जाते हैं। इन सभी पुराणों में मानवीय मूल्यों की महिमा कथानायकों के आदर्श चरित्रों के माध्यम से गाई गई है। जैसे पद्मपुराण में आदर्श एवं आज्ञाकारी पुत्र के रूप में भगवान राम, भातृप्रेम के लिए । समर्पित त्याग मूर्ति नारायण लक्ष्मण और उनके अनुज भरत तथा पुत्र मोह में मोहित कैकेई, राम की आदर्श माता कौशल्या, पति की सहगामिनी सती सीता मानवीय मूल्यों के ज्वलन्त उदाहरण हैं। हरिवंशपुराण में तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ, नारायण श्रीकृष्ण तथा कौरवों-पाण्डवों के राग-विराग में झूलते विविध रूप भी मानवीय मूल्यों का दिग्दर्शन कराते ही हैं।