Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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अधिनियमानाय विज्ञान से भी गा गादीनामा विज्ञान
2851 | भारतीय गणित की और भी अनेक विशेषताएँ हैं। यथा- इसकी सूक्ष्मता, मौलिकता एवं इकाई। यथा- लम्बाई | आदि की इकाई परमाणु है, काल की इकाई समय है जो कि सेकण्ड का असंख्यातवाँ भाग है। भाव, ज्ञान, सुख। दुःख आदि की इकाई है। भाव के अविभाग प्रच्छेिद जिसका वर्णन तो आधुनिक विज्ञान में प्रायः है ही नहीं। वस्तु । की सूक्ष्मतम इकाई है परमाणु जो आधुनिक विज्ञान के परमाणु से अत्यन्त सूक्ष्म है। केवल सूक्ष्मता की दृष्टि से ! ही भारतीय गणित विज्ञान श्रेष्ठ नहीं है। परन्तु इसकी अनन्त तक की व्यापकता की दृष्टि से भी श्रेष्ठ है। अभी
तक किसी भी पाश्चात्य गणित, विज्ञान, धर्म, दर्शन में अनन्त का वर्णन भारतीय वर्णन के बराबर नहीं है। . 9. विभिन्न विज्ञान 'सिद्धान्त शिरोमणि' में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का भी उल्लेख है
"आकृष्ट शार्कश्च महितया यत्स्वस्थं गुरू स्वाभिमुखं स्वशक्त्या।
- आकृष्ट यतेतत् पततिव, भाति समे समन्तात् पतत्वियं खे॥" __पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति के बल से सब जीवों को अपनी ओर खींचती है। यह अपनी शक्ति से जिसे खींचती है वह वस्तु भूमि पर गिरती हुई-सी प्रतीत होती है।
इस प्रकार न्यूटन (1642-1727) से लगभग 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण । के बारे में खोज करली थी। अन्य भारतीय गणितज्ञों में जैनाचार्य यतिवृषभ (5 ईस्वी) वीरसेनाचार्य (792 । ईस्वी), आचार्य नेमिचन्द्र (1100 ईस्वी), आर्यभट्ट (476 ईस्वी), बोधायन (ईसा पूर्व 800) व वराहमिहीर
(550 ईस्वी) ब्रह्मगुप्त (628 ईस्वी), श्रीधर (750 ईस्वी) महावीर (850 ईस्वी), नारायण दत्त (1356 ईस्वी), रामानुजन (1924 ईस्वी), वैज्ञानिक नार्लिकर और श्रीपाद आदि ने गणित विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया। आर्यभट्ट पहले खगोल विज्ञान वेत्ता थे। जिन्होंने पतिप्रादित किया कि पृथ्वी अपनी अक्ष पर घूमती हुई सूर्य के चारों ओर घूमती है। आर्यभट्ट रचित 'सूर्य सिद्धान्त' ग्रन्थ में पृथ्वी के वृत्ताकार होने का वर्णन है इसमें पृथ्वी का व्यास 7905 मील बताया गया है जबकी आज के वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी का व्यास 7918 मील है। जैनाचार्य जिनभद्र ने अपने एक ग्रंथ में पृथ्वीवासियों की संख्या 29 अंकों से प्रदर्शित की है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम द्वारा समुद्र पर पुल बाँधा जाना हमारी प्राचीन शिल्पकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। लंका नरेश रावण के पास, पुष्पक विमान था जिसका उल्लेख वाल्मिकी रामायण एवं जैन रामायण में आया है। . "जाल वातायनयुकि काश्चनैः स्फाटिकैरपि।" (वाल्मीकी रामायणस 9-16)
वह पुष्पक विमान सोने की जालियों और स्फटिक मणियों को खिडकियों से युक्त था। विमान संचालन के 22 रहस्य थे। 'भारद्वाज सूत्र' में उल्लेख है
"दिकप्रदर्शन रहस्यो नाम विमान मुख केन्द्र कीली चालनेन।
दिशम्पति यंत्र-नालपत्र परयानागमन दिक्प्रदर्शन रहस्यम्॥" अर्थात् दिकप्रदर्शन नामक 28 रहस्य के अनुसार विमान के मुख्य केन्द्र की कीली (बटन) चलाने से 'दिशाम्पति' नामक यन्त्र की नली में, रहनेवाली सुई द्वारा दूसरे विमान के आगे की दिशा जानी जाती है। नौका निर्माण कला में भी काफी प्रगति हुई थी। चुम्बकीय शक्ति का भी भारतीय वैज्ञानिकों को ज्ञान था। राजा भोज ने 'यन्त्रसार' नामक ग्रन्थ में लिखा है
"न सिन्यु गापर्चीत लोहबन्य, तल्लोहकान्तर्षियतेचलोहम्। विपयेत तेन जलेषु नौका, गुणेन बन्यं निजगाद भोजः॥"