Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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परेशानियाँ उसकी बीमारी पर हावी हैं, उन्हें बाहर निकालने के लिए डॉ. प्रयोग करे तो इलाज का प्रभाव ज्यादा सक्रिय होने लगता है। प्रो. स्टीव राइट के अनुसार डॉक्टर को पहले अध्यात्म की जरूरत है, जिससे वह मरीज को प्रभावित कर सकता है। एडिनबरा विश्वविद्यालय के चिकित्सा छात्रों ने पाठ्यक्रम निर्धारकों से मांग की कि वे चिकित्सा पाठ्यक्रम के साथ अध्यात्म की कक्षाएं लगाएं, जहाँ उन्हें विधिवत ध्यान व प्रार्थना के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण से अवगत कराया जाए। इन्हें योग विद्या के संबंध में प्रशिक्षण भी दिया जाए। ध्यान व योग से शारीरिक स्थिरता के साथ मन को एकाग्र किया जा सकता है। ___घ्यान एवं रोग निदान में इसकी महत्ता
ध्यान में किसी मन्त्र या मन्त्र-बीजाक्षर का विशुद्ध चिन्तन है। जो आत्मशक्ति व संकल्पशक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। ध्यान- संवेगात्मक भावों एवं मानसिक विकारों पर नियंत्रण कर व्यक्ति को सहिष्णु एवं तनावरहित करता है। ध्यान से - क्रोध जैसे आवेग को कम कर सकते हैं। स्वभाव की सहजता में जीने में यह सहायता करता है। ... हमारा चित्त या मन सदैव विचारों की यात्रा करता हुआ, बाहर दौड़ा करता है। जीवन ऊर्जा का 80 प्रतिशत भाग यों ही बाहर व्यर्थ बहकर नष्ट हो जाता है और इसे संघारित्र करने की क्षमता हम नहीं जुटा पाते हैं। ध्यान व योग से इस जीवन ऊर्जा को अपने भीतर रोक सकते हैं। जैसे उत्तल लैंस (Convex Lens) फैलती हुई अपसारी किरणों को एक बिन्दु पर फोक्स कर ऊष्मीय उर्जा का निष्पादन करता है, वैसे ही ध्यान से विचारों का प्रवाह रोककर, विचार-शून्य स्थिति की ओर करते हैं। ध्यान से मनोविकारों का परिशोधन होता है।
ध्यान है- हमारी बाह्य कायिक, वाचनिक एवं सूक्ष्म मानसिक भाव-वृत्तियों का संकुचन। जितना जितना इन तीनों प्रकार की प्रवृत्तियों में संकुचन या निरसन होगा, आत्म विशुद्धि या आत्म-शक्ति का विकास उसी क्रम में बढ़ेगा। ध्यान-जैनदर्शन की आत्मा है और यह चारित्र शुद्धि का अंतिम पड़ाव है। रोग निदान में ध्यान व योग में अद्भुत क्षमता है। नोर्थ कैरोलिना की ड्यूक यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों ने पाया कि जो लोग मंदिर उपासना-गृह प्रार्थना या ध्यान स्थल पर नियमित जाकर ध्यान करते हैं, वे इन स्थानों पर न जाने वाले लोगों की अपेक्षा कम बीमार पड़ते हैं। अध्ययनों से एक बात और सिद्ध हुई कि जो लोग सप्ताह में एक या अधिक बार धर्मस्थलों | तीर्थस्थानों पर जाकर धर्मसेवा करते हैं, वे अन्य लोगों की अपेक्षा सात वर्ष अधिक जीते हैं। ___ अध्ययन व परीक्षणों के निष्कर्ष :- ब्रिटेन में 31 अध्ययनों से एक तथ्य उजागर हुआ कि जो प्रार्थना में विश्वास रखते हैं और प्रतिदिन प्रार्थना करते हैं- वे ज्यादा प्रसन्न रहते हैं। मानसिक तनाव उनका कम रहता है जिससे वे शांति का अनुभव करते हैं। ब्रिटेन के ही डॉ. गिल वाइट का कथन है कि- 'अध्यात्म के जरिये चिकित्सा करते समय, मैं उस समय तक प्रतीक्षा करती हूँ, जब तक मेरे शरीर में एक करंट-सा महसूस नहीं होने लगता। मेरे हाथ मरीज़ के सिर व शरीर के ऊपर घूमते हैं और रोगी की मेरे मन व शरीर से ट्यूनिंग' हो जाती है, जिससे हमारे व मरीज के बीच ऊर्जा का संचरण होने लगता है।' रोयल सोसायटी आफ मेडिसीन के 'जर्नल' में प्रकाशित एक शोध लेख में डॉ. डिम्सन के अनुसार- पहिले वह स्वयं अध्यात्म के जरिए ऊर्जा संचित करता है, जो उसे ब्रह्माण्डीय ऊर्जा से प्राप्त होती है फिर उसे मरीज को प्रदान करता है। अध्यात्म के क्षेत्र में