Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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चिकित्सा विज्ञान और अध्यात्म
3591 50 की उम्र पार कर जाता है, उस पर मानसिक तनाव का प्रभाव जल्दी होने लगता है। चिड़चिड़ापन उसके
तनाव की ही अभिव्यक्ति है। डायबिटीज बढ़ना, भूख कम लगना, कमर दर्द, आँखों की ज्योति मंद पड़ना और । रक्तचाप प्रभावित होना आदि बीमारियाँ-मानसिक तनाव के कारण हैं। ___ वस्तुतः प्रार्थना या स्तुतिगान करते समय हम उस लोकोत्तर व्यक्तित्व से जुड़ जाते हैं, जिनका गुणस्तवन हमारी प्रार्थना का आधार होता है। उदाहरणार्थ- संस्कृत भक्तामर स्तोत्र का मूल पाठ का उच्चारण करते हुए क्या हम वैसी ही ध्वनि तरंगों का निष्पादन और निर्गमन नहीं करने लगते हैं, जो आचार्य मानतंग ने सजित की होंगी? उस समय, ध्वनि तरंगों की 'फ्रिक्वेंसी' में साम्यावस्था होने से हम आचार्य मानतुंग से तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। हाँ केवल वाचनिक रूप से की गई प्रार्थना रूपांतरण नहीं कर पाती। भाव- सम्प्रेषण प्रार्थना का प्रमुख तत्त्व होना चाहिए। ऐसी प्रार्थना या स्तुति गान, कषायजन्य विचारों के लिए परावर्तक (Reflector) का कार्य करती है। बुरे विचार हमारे ऊपर आक्रमण करें इसके पहले ही वे परावर्तित हो जाते हैं। आ. समन्तभद्र स्वामी को महान दार्शनिक और दिगम्बर मुनि थे, को भस्मक रोग हो गया था। उनके गुरु ने सल्लेखना देने के लिए मना कर दिया क्योंकि उनके तेजस्वी जीवन को जैनदर्शन को बहुत कुछ देना था। उन्होंने वृहत् स्वयंभू स्तोत्र की रचना करते हुए 24 तीर्थंकरों के गुणस्तवन स्वरूप जिस भावस्थिति को प्राप्त किया उससे, भस्मक रोग वहां से शान्त होना शुरू हो गया। भाव-स्थिति उनका अपना उपादान था और राज-भोग का भोजन निमित्त बना उसकी उपशान्ति में। अतः प्रार्थना भावनात्मक परिवर्तन के साथ शारीरिक व्याधि को मिटाने में एक प्रबल निमित्त है।
एक दूसरी घटना
घटना 1999 की है। कैंसर विशेषज्ञ डॉ. रोबर्ट ग्राइमर बर्मिंघम रायल आर्थोपेडिक अस्पताल के अधिकारी थे। उनकी नज़र एक ऐसे मरीज पर पड़ी जो हड्डियों के कैंसर से जीवन-मत्यु के बीच संघर्ष कर रहा था। उसका । ट्यूमर शल्य क्रिया द्वारा अलग कर दिया गया था। लेकिन जब दूसरा ट्यूमर पैदा हो गया तो मरीज मैरीसेल्फ ने । मौत को ही मित्र मान लिया। वह पेशे से साइकियाट्रिस्ट थी। उसने दवा की चिंता छोड़कर ईश्वर की प्रार्थना के लिए अपनी आस्था जोड़ ली। समय बीतता गया और कुछ अद्भुत परिणाम हासिल होने लगे। स्केन रिपोर्ट में उसका टूयमर कुछ घटता हुआ नजर आया। डॉ.ग्राइमर ने मैरी से इसके बारे में जानना चाहा तो उसने बड़े
आत्मविश्वास से भरकर कहा- हाँ डॉक्टर! मेडिकल इलाज से परे भी कुछ और है। अच्छा होने में मैं उसीको श्रेय देती हूँ। ___डॉ. ग्राइमर ने हंसते हुए कहा- 'मैं उसे खरीद लेना चाहता हूँ।' 'नहीं! वह कोई क्रय विक्रय की वस्तु नहीं है। वस्तुतः वह वस्तु नहीं, विशुद्ध भाव है। जिसे करोड़ों डॉलर से भी नहीं खरीदा जा सकता है।' ब्रिटेन के डॉक्टरों का ध्यान इस दूसरी शक्ति की ओर जाने लगा। जिसे अध्यात्म (ध्यान प्रार्थना) की अमोघ शक्ति कह सकते हैं। और वे चिकित्सा विज्ञान तथा अध्यात्म विज्ञान के परस्पर सहसंबंधों (Corelation) पर प्रयोगों में जुट गए।
एडिनबरा यूनिवर्सिटी के मेडिकल स्कूल के डॉक्टर 'मरे' अपने साथ मरीज की एक्स-रे रिपोर्ट और पेनिसिलीन के साथ यह जानकारी रखते थे कि क्या मरीज कभी प्रार्थना भी करता है? मरीज के मन में जो