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विकित्सा विज्ञान और अध्यात्म
3611/ 'विश्वास' या श्रद्धा एक शक्तिशाली चीज है। यदि डॉक्टर-मरीज को यह विश्वास दिला पाने में सफल है कि वह अपने आराध्य के प्रति पूर्ण विश्वास रखे तो जल्दी स्वास्थ्य लाभ ले सकेगा, तो ऐसे डॉक्टर की दवा ज्यादा असरदार साबित होगी।
अमेरिका के 12 5 में से 50 मेडिकल कालेजों में इस समय अध्यात्म विषय को पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार कर पढ़ाया जा रहा है। डॉ. ब्रानले एंडरसन का कहना है कि जब तक डॉक्टर स्वयं को अध्यात्म की ऊर्जा से 'चार्ज' नहीं करेगा, तब तक वह मरीज को इससे चार्ज नहीं कर सकता। पश्चिमी जगत में आज आध्यात्मिक इलाज को 'समग्र इलाज, की संज्ञा दी गई है। विचारणीय प्रश्न यह है कि भारत की यह विरासत जिसका अलिखित पेटेंट अभी तक भारत के नाम ही है, भारत में क्यों उपेक्षित है? मुनि श्री क्षमासागरजी ने अपने एक लेख में जैनेन्द्रकुमार की एक घटना का जिक्र किया है। जीवन के आखिरी समय जब वे पैरालाइज हो गये और उन्हें बोलने में बहुत तकलीफ होने लगी क्योंकि उनके गले में बहुत अधिक कफ संचित हो गया था। डॉक्टरों ने कहा अब ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है तब पहली बार उनको लगा कि जीवन में भगवान की कितनी जरूरत है। उन्होंने णमोकार मन्त्र पढ़ा। उन्होंने अपने अन्तिम संस्मरण में लिखा कि- 'मैं णमोकार मन्त्र पढ़ता जाता था और रोता जाता था। आधा घण्टे तक णमोकार मन्त्र पढ़ते पढ़ते खूब जी भरके रो लिया। जब डॉक्टर दूसरी बार चैकअप के लिए आया तो उन्हेंने पूछा- मिस्टर जैन! आपने अभी थोड़ी देर पहले कौन सी मेडिसीन खाई है? नर्सेज से पूछा- इनको कौनसी मेडिसिन दी गई है? नर्सेज ने कहा- अभी कोई दवा नहीं दी गई। हाँ आपने कहा था- अपने ईश्वर को याद करो, इन्होंने वही किया है अभी।
आवश्यकता है, अध्यात्म को चिकित्सा विज्ञान से जोड़कर मानवीय सेवा को एक आध्यात्मिक प्रयोग ! (Spritual Experiment) की भाँति करने की। अध्यात्म की शक्ति जीवन में शांति का वर्षण करती है, जो मनुष्य के लिए एक अनमोल विरासत बन सकती है। सिर्फ जरूरत है- एक दृढ़ विश्वास, आस्था, श्रद्धा और । संकल्प की।