Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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स्मृतियाँ के गवायन में ५. स्फोटकर्म- सुरंग आदि का निर्माण करने का व्यवसाय,
६. दन्तवाणिज्य- हाथी दाँत, पशुओं के नख, रोम, सींग, आदि का व्यापार, ____७. लाक्षा वाणिज्य- लाख का व्यापार (लाख अनेक त्रस जीवों की उत्पत्ति का कारण है, अतः इस व्यवसाय में अनन्त त्रस जीवों का घात होता है),
८. रस वाणिज्य- मदिरा, सिरका आदि नशीली वस्तुएँ बनाना और बेचना, ९. विष वाणिज्य- विष, विषैली वस्तुएँ, शस्त्रास्त्र का निर्माण और विक्रय, १०. केश वाणिज्य- बाल व बाल वाले प्राणियों का व्यापार, ११. यन्त्र-पीड़न कर्म- बड़े-बड़े यन्त्रों-मशीनों को चलाने का धन्धा, १२. निर्लाच्छन कर्म-प्राणियों के अवयवों को छेदने और काटने का कार्य, १३. दावाग्निदान कर्म- वनों में आग लगाने का धन्धा, १४. सरोह्यदतड़ागशोषणता कर्म- सरोवर, झील, तालाब आदि को सुखाने का कार्य,
१५. असतीजनपोषणता कर्म- कुलटा स्त्रियों-पुरुषों का पोषण, हिंसक प्राणियों (बिल्ली, कुत्ता आदि) का पालन और समाज विरोधी तत्त्वों को संरक्षण देना आदि कार्य। ____ आज जब हम पर्यावरण के संदर्भ में जंगलों का उजड़ना, खनिज संपत्ति और जल आदिकी रिक्तता के बारे में सोचते हैं, तब आजीविका के इन पंद्रह अतिचारकी महत्ता हम समझ सकते हैं। उन कर्मों का निषेध अनेक तरह से पर्यावरणकी सुरक्षा के लिये उपकारक है।
लकड़ी आदि काटकर कोयले आदि बनाने से वनस्पति का भी नाश होता है और उसे जलने से वायु भी प्रदूषित होती है। पशुओं को किराये पर देना या बेचना भी अधर्म माना गया है। यहाँ अहिंसा के साथ अनुकंपा
और सहिष्णता का भाव भी निहित है। पशओं के दांत. बाल. चर्म. हडडी. नख. रोम. सींग और किसी भी अवयव का काटना और इससे वस्तओं का निर्माण करके व्यापार करना निषिद्ध है। __ आज हम हाथीदांत और अन्य प्राणीयों के चर्म, हड्डी आदि से सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण के लिये अनियंत्रित । ढंग से प्राणियों की हत्या करते हैं। ___ वन-जंगल आदि केवल वृक्ष का समूह वनस्पतिका उद्भवस्थान ही नहीं है, लेकिन पृथ्वी पर के अनेक जीवों के जन्म, जीवन और मृत्यु के परस्पर अवलंबनरूप इकाई हैं। वास्तविक दृष्टि से पृथ्वी के सर्व जीवों के वृक्षवनस्पति सहित परस्पर अवलंबनरूप, एक आयोजनबद्ध व्यवस्था है मनुष्य ने अपने स्वार्थवश कुदरत की यह । परपस्परावलंबन की प्रक्रिया में विक्षेप डाला है। निष्णात लोगों का मत है कि प्रत्येक सजीव का पृथ्वी के संचालन में अपना योगदान है. लेकिन आज पृथ्वी पर का जैविक वैविध्य कम होता जा रहा है। वन और वनराजिजीवजंतु, पशुपक्षी आदि का बड़ा आश्रयस्थान है। लेकिन जंगल के जंगल ही जब काटे जा रहे हैं, तब उसमें रहनेवाले पशु-पक्षियों की सलामती कैसे रहेगी? सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पादनके लिए हाथी, वाघ, मगर, सर्प आदिकी निर्मम हत्या की जाती है। कीटनाशक दवाओं से भी असंख्य जीव-जंतुओं का नाश होता है। वनसृष्टि के विनाश से उपजाऊ जमीन भी बंजर बन जाती है, रेगिस्तान का विस्तार बढ़ता है।
जमीनको खोदने से उसमें रहनेवाले जीवों की हिंसा होती है इसलिये सुरंग आदि बनाना और खनिज संपत्ति