Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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| महत्वपूर्ण कार्य किया है। भिन्न जैसा विषय भी आपसे नहीं बच पाया। भिन्न के सरलीकरण में जोड़-बाकी की । क्रिया को सरल बनाने के लिए आपने जो कल्पना की उसे 'निरुद्ध' शब्द की संज्ञा से अभिहित किया गया।
धीरे-धीरे यही निरुद्ध 'लघुत्तम समापवत्य' के नामसे पुकारा जाने लगा। लघुत्तम समापवर्त्य की विधि को स्पष्ट करके आचार्य महोदय ने गणितज्ञों और गणित के अध्ययनकर्ताओं को कृतार्थ किया है। ‘इकाई भिन्न' भी आचार्य जी की मौलिकता की परिचायका है। वस्तुतः आचार्य जी ने इसको 'रुपांशक भिन्न' की शाब्दिकता प्रदान की थी और आज यही 'इकाई भिन्न' के नाम से प्रचलित है। महावीराचार्य के अतिरिक्त अन्य किसी गणितज्ञ ने इस विषय को नहीं जाना था। ___ अन्ततः उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्पष्टतः कहा जा सकता है कि जैनाचार्यों का भिन्न गणित में वह योगदान है जो कदापि विस्मृत नहीं किया जा सकता।
1. ऋग्वेद 10, 90, 4 2. मैत्रायणी संहिता, 3, 7,7 3. वेदांग ज्योतिष, 39 4. The baut 'On the Sulba Sutra' J. A. S. B. (1875) Reprint page 28.
* पंचजोयण सहस्साति, दीक्षिणय एकावण्णे जोयणसऐ एगृणतो-संच एगसद्धीभागे-'सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र', । पृष्ठ 81 $ णावणवउर्ति जोयण सहदलाई छच्चपण्णमाले जोयसणसए पणणतीसंच एगसद्धी भागे. वही, पृष्ठ | 29, * एगजोयणा सवसहस्यं छच्चचउप्पण जोयणसए छब्बिसंच एगसद्वीभागे वही भाग पृ.3.
5. सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र, 11 व 23
6. दो जोयाणांई अद्ध बयालीसंच तैसीय सत भागे, तिष्णि जोयाणाइं अद्धसीया ली संच तैसीय सत भाग, , चत्तारि जोयणाई अद्ध वावष्णंच तैसीय सय भागे सूर्य प्रज्ञप्ति सूत्र पृष्ठ 38, 39. * गुरुगोविन्द चक्रवर्ती 'Hindu Treatment of fraction pp 85. $ सूर्य प्रज्ञप्तिसूत्र, पृ.2 7. डॉ. ब्रजमोहन 'गणित का इतिहास' पृ. 81 8. गणित सार संग्रह, अध्याय 3, गाथा 75 9. वही, अध्याय 6, गाथा 77 10. गणित सार संग्रह अध्याय 6, गाथा 78. 11. वही, अध्याय 6, गाथा 80 12. गणितसार संग्रह, अध्याय 3, गाथा 85
13. कल्पित संख्या ऐसी होनी चाहिए कि एक कम कल्पित संख्या से दी हुई भिन्न का हर पूर्णतः विभाजित । हो जाये।
14. गणित सार संग्रह, अध्याय 3, गाथा 87 15. कल्पित संख्या ऐसी होनी चाहिए कि दोनों भाग निःशेष हों। 16. गणित सार संग्रह, अध्याय 3, गाथा 89 17. गणित सार संग्रह, अध्याय 4, गाथा 12-16 18. वही, अध्याय 6, गाथा 131 1/2