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| संज्ञा दी है। इसी प्रकार धर्म और अधर्म द्रव्यो के गतिशील एवं स्थिर बल के रूप में मान्यता दी जाए सकती है।
न्यूटन युग के बाद और आइंस्टीन युग के पूर्व पदार्थ और ऊर्जा भिन्न प्रकृति के माने जाते थे। इसके बाद परमाणु के घटक अवयवों के अन्वेषण तथा आइंस्टीन के द्रव्यमान-ऊर्जा विनिमय के सिद्धांत ने जैनों की वैज्ञानिकता को आधुनिकता प्रदान की। वे अपने परमाणु की अविभागिता पर अड़े रहे और उन्होंने विज्ञान की खोजों को व्यवहार परमाणु के रूप में माना एवं उसे विद्युत-चुंबकीय तरंकणी, भारहीन चतुष्पर्शी माना तथा द्रव्यमान की उत्पत्ति को चतुष्पर्शी से अष्टस्पर्शी में परिणमन का परिणाम माना। परमाणु के अतिरिक्त, परमाणु-समूह की वर्गणायें भी इसी कोटि में व्याख्यायित की जा रही हैं और हम व्यावहारिक स्थूलता से सूक्ष्मतर कोटि में जा रहे हैं। हमने आहार, भाषा, तैजस शरीर आदि को विद्युत-चुंबकीय तरंग मूलक माना है पर इनके स्थूल रूप एवं वर्णन पर मौन रखा है। क्या हमें सूक्ष्म जगत में ही रहना है? वस्तुतः जैनों का विज्ञान सूक्ष्म कोटि में कितना ही गुणात्मकतः वैज्ञानिक क्यों न माना जाये, उनके स्थूल जगत के विवरण और अधिक व्याख्या और विचार चाहते हैं। सामान्य जन तो स्थूल जगत के आधार पर ही सूक्ष्म जगत की विश्वसनीयता मानेगा। हमे रसायन के स्थूल जगत पर ही वैज्ञानिक प्रगति की दृष्टि से विचार करना चाहिए।
भौतिक और रासायनिक क्रियायें ___ हमारे स्थूल जगत के अनेक उपयोगी या विनाशक परिवर्तन स्थूल पदार्थो के स्वयं या अन्य पदार्थों के साथ होने वाली भौतिक या रासायनिक क्रियाओं से होते हैं। इनमें परमाणु, भौतिक स्कंध या रासायनिक यौगिक मुख्यतः भाग लेते हैं और अनेक पूर्ववर्णित कारक इन प्रक्रियाओं में सहयोगी होते हैं। वर्तमान में इनके निम्न उदाहरण दिये जा सकते हैं:
1. परमाणु क्रियाः यूरेनियम-30 शक्तिशाली कों की बैठार, नेक्चूनियम239 2. रासायनिक क्रियाः शक्कर
मद्य • आहार पाचनः शक्कर + वायु→ कार्बनडाईआक्साइड + जल + ऊर्जा 3. भौतिक क्रिया : बालू + लौह चूर्ण→ बालू-लौह चूर्ण मिश्रण इस प्रकार की क्रियाओं के उदाहरण शास्त्रों में संकेत एवं सूत्र रूप में नहीं मिलते और कुछ उदाहरण मिलते भी हैं, तो उनमें पदार्थ के उत्पाद में परिणत होने की क्रियाविधि का विवरण नहीं रहता। वर्तमान विज्ञान में इस मध्यम चरण को जानने का भी अभ्यास किया गया है। जैन ने शास्त्रों में प्राप्त 29 अवलोकनों का संकलन किया है, जिनमें 18 भौतिक क्रियाएं (अवस्था परिवर्तन, प्रशीतन, द्रवण आदि), 8 रासायनिक क्रियाएं (घड़े बनाना, बत्ती का जलना, कृषि उत्पाद, धातुकर्म और किण्वन आदि) और तीन अपरिभाषित क्रियाएं (जीवकर्म बंध आदि) हैं। पारमाणविक या न्यूक्लियर क्रियाओं का उल्लेख तो नहीं ही है। स्पष्ट है कि शास्त्रों में भौतिक परिवर्तनों के उदाहरण अधिक हैं, ये अस्थायी और सरलता से अपघटित किये जा सकते हैं। रासायनिक क्रियाओं में प्रायः अविघटनीय स्थायी उत्पाद बनते हैं, कुछ उष्मा निकलती है या कुछ देनी पड़ती है। परमाणविक या न्यूक्लीय क्रियाएं यंत्र साध्य एवं कष्ट साध्य हैं। उनमें परमाणु के रूपांतरण (विभंजन या संगलन) के साथ पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त होती है जिसका उपयोग बिजली आदि के उत्पादन में होता हैं। परमाणु की सूक्ष्मता और अनंत शक्ति की मान्यता वाले जैनों ने इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया, यह आश्चर्य है।