Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
View full book text
________________
340
नियों के वाताय
स्पर्श गुणों में उष्मीय (शीत, उष्म), पृष्ठतलीय (मृदु, कर्कश), भारात्मक (गुरु, लघु) और स्वाभाविक (स्निग्ध, रूक्ष) के चार युग्म समाहित होते हैं। इन और अन्य गुणों का वर्णन अनेक लेखकों ने किया हैं, लेकिन सारणी 1 से स्पष्ट है कि हम वर्तमान वैज्ञानिक मान्यताओं की तुलना में किस स्तर पर हैं? विज्ञान ने तो रूपरसादि की अनुभूति की क्रियाविधि एवं माप तक प्रस्तुत किये हैं जो हमारे शास्त्रों में अनुपलब्ध हैं। प्रमुख स्कंधों के विवरण
परमाणु को धातु - चतुष्क (पृथ्वी, जल, तेज, वायु) का कारण माना गया है। अतः ये स्कंध हैं और इनका वर्णन पुद्गल - स्कंधों के रूप में किया जा सकता है। वस्तुतः ये निर्जीव परमाणुओं से उत्पन्न होते है, अतः इन्हें 1 निर्जीव मानना चाहिए। अजीव से अजीव कैसे उत्पन्न हो सकता है? जीवों की कोशिकीय रचना के जटिल
रासायनिक संगठन की तुलना में इन पदार्थों का संगठन अल्प- अणुकी भी होता है। तथापि जैनों ने इन्हें सजीव माना है और शस्त्रोपति से इनकी अजीवता बताई है। इनकी सजीवता संभवतः आधाराधेय भाव से संबंधित है, क्योंकि इनके आश्रय में अनेक जीवों का जीवन चलता है। उक्त स्कंधों का शास्त्रोक्त संक्षेपण सारणी 2 में दिया है।
सारणी 2 : धातु चतुष्को का विवरण
उदाहरण
धातु, रासायनिक यौगिक, मणि, मिट्टी पत्थर आदि अनेक स्रोत के जल, मद्य, दूध आदि
ताप, प्रकाश, विद्युत और अग्नि के प्राकृतिक रूप विभिन्न प्राकृतिक हवाएँ, श्वासोच्छ्वास
धातु नाम
1. पृथ्वी
2. जल 3. तै
संख्या
30-48 ठोस
प्रकृति
7-19 द्रव
6-12
ऊर्जा
7-19
4. वायु गैस इस संक्षेपण से अनेक तथ्य प्रकट होते हैं:
(1) विभिन्न शास्त्रो में इन स्कंधों के भेदों की संख्या में अंतर पाया जाता है। इन अंतरों के कारण उन्हें । भौतिक विवरण के संबंध में 'जिणेहि पवेइयं' मानने में किंचित् आशंका होती है।
(2) पृथ्वी आदि स्कंधों में वर्णित पदार्थों की संख्या मात्र प्राकृतिकतः उपलब्धता व्यक्त करती है। इस संश्लेषित युग एवं रसायन - विज्ञान विकास के युग में सभी प्रकार के स्कंधों की संख्या में अकल्पनीय वृद्धि हुई है । फलतः इन विवरणों की ऐतिहासिकताः ही प्रामाणिकता मानी जा सकती है।
(3) दिगम्बर ग्रंथों की तुलना में श्वेतांबर ग्रंथों के विवरण अधिक विस्तृत हैं।
पुद्गल और स्कंधों के विविध परिणाम
शास्त्रों में पुद्गल स्कंधों के सामान्यतः उपलब्ध विविध परिणाम या पर्याय बताए हैं। उत्तराध्ययन (उ) 28 एवं तत्त्वार्थ सूत्र (त) 5.23-24 ठाणम् (टा) लोक प्रकाश के विवरणों का संक्षेपण करने पर इन परिणामों । सारणी 3 प्राप्त होती है।
सारणी 3 : पुद्गल स्कंधो के परिणाम
उ., ठ., त.
ठा., त.
ठा., त., उ.
ठा., त. उ.
उ., ठा., त.
1. शब्द
2. बंध
3. भेद /विभाग
4. संस्थान
5. - 8. रूपादि 4
13. अंधकार
14. उद्यो
15. छाया
16. आतप
17. प्रभा
त., उ.
त., उ.
त., उ.
त., उ.
उ.