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! वर्गणा होने से इनमें स्कंध और पुद्गल के सभी गुण पाए जाते हैं। हाँ, महास्कंध को छोड़कर सभी वर्गणाएँ
चतुष्पर्शी रूप में उत्पन्न होती हैं। ___ वर्गणाओं के नाम अणु से प्रारम्भ होकर महा स्कंध तक जाते हैं अर्थात् यह वर्गीकरण सूक्ष्मतम से स्थूलतम की ओर जाता है। इसमें चार प्रकार की वर्गणाए हैं: (1) सामान्य वर्गणा, 10, (2) अग्राह्य वर्गणा 5, (34) ध्रुप और ध्रुव शून्य वर्गणा, 4। इनमें जीवों के उपयोग में आनेवाली वर्गणाएं कुल आठ हैं: आहार, तैजस, भाषा, मन, कार्मण, प्रत्येक शरीर, बादल निगोद तथा सूक्ष्म निगोद। इसमें अणुवर्गणा भी जोड़नी चाहिए।आहार वर्गणा में श्वेताम्बर मान्य, औदारिक, वैक्रियक और आहारक और आन-प्राण वर्गणाएं समाहित की गई हैं। - जैनों को डेल रीप ने वर्गीकरण विशारद माना है। यह वर्गीकरण उनके मत का समर्थन करता है, अन्यथा पाँच ! अग्राह्य वर्गणाएँ, 4 अणु वर्गणाए तथा 4 ध्रुव/ध्रुव शून्य वर्गणाएँ न भी होती, तो काम चल जाता। इसीलिए विशेषावश्यकभाष (सातवी सदी) में औदारिक आदि आठ वर्गणाओं का ही मुख्यतः उल्लेख है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे पुद्गल के अजीव होने के कारण यहाँ प्रत्येक शरीर, बादल निवोद एवं सूक्ष्म निवोद को सम्मिलित नहीं किया गया। आचार्य नेमिचन्द्र ने भी इस सूची को देखकर आहार वर्गणा में उपरोक्त चार वर्गणाओं का समाहार कर दिया। भाष्य की सूची का आधार क्या है, यह स्पष्ट नहीं है। क्या इसका यह अर्थ है कि परमाणु की संख्या की वृद्धि से निविडता के कारण सूक्ष्मता आती है। इसी प्रकार, कर्म वर्गणा और सूक्ष्म निगोद वर्गणा की भी स्थिति है। क्या परमाणु समूहों की अल्पता से सदैव अवगहना बढ़ती है? क्या इसे "स्वभावोऽतर्क गोचराः" से समीचीन रूप से व्याख्यायति किया जा सकता है? इसी प्रकार क्या एकप्रदेशी परमाणुओं के मात्र एकाकी होने से उन्हें वर्गणा की कोटि में रखा जा सकता है? हाँ, यदि वर्गणा गणितीय वर्ग को निरूपित करती है, तो 12 = 1 के अनुसार ये वर्गणा में समाहित हो सकते हैं। इस वर्गीकरण की अन्य अपूर्णताओं पर अन्यत्र विचार किया गया है। ।
पुद्गल के पाँच सौ तीस भेदर : प्रज्ञापना में पुद्गल के स्पर्श आदि गुणों के प्राधान्यऔर गौण्य की अपेक्षा 530 भेद बताए हैं। इनमें (1) रंग की प्रधानता से 5 x 20 = 100, (2) स्पर्श की प्रधानता से 8x23 = 184, (3) रस की प्रधानता से 5 x 20 =100 (4) गंध की प्रधानता से 2 x 223 = 446 और (5) संस्थान की प्रधानता से 5 x 20 = 100 भेद समाहित होते हैं। इस वर्गीकरण को हम बौद्धिक व्यायाम ही कह । सकते हैं।
पुद्गल स्कंध के गुण
पुद्गल को रूपी या मूर्तिमान के रूप में कहा है और राजवार्तिक 5.5 के अनुसार रूप शब्द से पुद्गल के पाँच गुण प्रकट होते हैं। इनके भेद प्रभेदों का संक्षेपण सारणी एक में वर्तमान वैज्ञानिक मान्यताओं के साथ दिया गया है।
सारणी 1 : पुदगल के गुण23 गुण
वैज्ञानिकतः भेद स्पर्श
8/10
wwwe Hima
wom.w
भेद
20
गंध वण संस्थान
7+2 7,33
5,7,11