Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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3151 फिर पहले हर को 2 से और अंन्तिम हर को 2/3 से गुणा करके समस्त भिन्नों को जोड़ दो। (2) 1 को विषम संख्या के रूपांशक भिन्नों के योग में विभक्त करना।'
इसके लिये नियम इस प्रकार बताया गया है। 2 से शुरू करके एक-एक बढ़ाते जाओ और इन राशियों को | रूपांशक भिन्नों के हरों के रूप में रखते जाओ। चूँकि भिन्नों की संख्या विषम रखनी है। अतः अन्तिम हर 2 n होगा।
इसके बाद प्रत्येक हर को अगले हर से गुणा करके आधा कर दो। अन्तिम हर के आगे कोई और हर नहीं है! अतः उसे गुणा नहीं करना केवल आधा करना होगा। फिर सबसे जोड़ लो।
(3) किसी दिये हुए एकांशक भिन्न को अनेक भिन्नों के योग के रूप में व्यंजित करना जबकि प्रत्येक के अंश दिये हुये हैं।10 __इसके लिये नियम इस प्रकार बताया गया है- दी हुई भिन्न का हर पहली भिन्न का आंशिक हर होता है। उस आंशिक हर में अपने अंश को जोड़ देने पर जो मिलता है वह दूसरी भिन्न का आंशिक हर होता है इत्यादि, प्रत्येक आंशिक हर को अगली आंशिक हर से तथा अन्तिम आंशिक हर को अपने अंश से गुणा करने पर उन भिन्नों की वास्तविक हरों की प्राप्ति होती है। यथा-यदि को ऐसे चार भिन्नों के योग में व्यक्त करना है जिनके अंश a, b, c और d दिये हुये हैं तो,
h = n(na) + (n+a) (n+a+b) + (n+a+b) (i+a+b+c) + dn+a+b+c) (4) किसी दी हुई भिन्न को एकांशक भिन्नों के योग के रूप में व्यंजित करना।
इसके लिये नियम इस प्रकार बताया गया है। दी हुई संख्या के हर में किसी ऐसी संख्या को जोड़ दो कि योगफल में यदि दी हुई भिन्न के अंश से भाग दें तो वह पूर्णतः विभाजित हो, शेष बिलकुल न बचे। इस प्रकार भाग देने से प्राप्त लब्धि पहले भिन्न की हर होती है। इस हर और दी हुई भिन्न के हर के गुणनफल का उस संख्या में जो पहले दी हुई संख्या के हर में जोड़ी गयी थी, भाग देते हैं तो यह शेष भिन्नों के योग उत्पन्न करती है। इस शेष पर वही क्रिया करने पर अन्य भिन्नों की हरें प्राप्त होती हैं। यथा दी हुई भिन्न है। यदि G ऐसी संख्या
a
b
हो कि "M पूर्ण संख्या 5 के बराबर हो तो उपर्युक्त नियमानुसार,
M = 1+S
इसमें पहली एकांशक भिन्न है तथा अन्य एकांशक भिन्नों को ज्ञात करने के लिये SN पर वही क्रिया करनी चाहिए।
(5) किसी दी हुई एकांशक भिन्न को दो अन्य एकांशक भिन्नों के योग के रूप में व्यंजित करना12
इसके लिये दो नियम दिये गये हैं। पहला नियम इस प्रकार है। दी हुई भिन्न के हर को उपर्युक्त कल्पित संख्या से गुणा करने पर पहली एकांशक भिन्न का हर मिलता है। यह हर, एक कम पिछली चुनी हुई संख्या द्वारा ।