Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
View full book text
________________
सम विज्ञान
29371
लब्धियों का महत्त्वपूर्ण वर्णन है। जैसे नाभिकीय विखण्डनका क्रम विज्ञानमें उपलब्ध होता है, नाभि से इलेक्ट्रान युक्त अणुके विखण्डनमें प्रोटॉन और न्यूट्रानकी भूमिका की तरह विशुद्धि द्वारा मिथ्यात्व, सम्यक्-मिथ्यात्व और सम्यक् प्रकृति इन तीन टुकड़ो में मिथ्यात्व द्रव्य को खंडितकर जीव अंततः सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। क्षपणासारमें कर्मों के क्षपण का अंकगणितीय, बीजगणितीय एवं रेखागणितीय संदृष्टि पूर्ण चित्रण है। ___ इन सभी बातों को दृष्टि में रखते हुये कहा जा सकता है कि जैन लिखित कर्म साहित्य के विकासका इतिहास
प्रथम शताब्दी से प्रारंभ होकर वर्तमानकाल तक आता है। दिगम्बर जैन कर्म साहित्य में जहाँ भी हम वैज्ञानिक । परिप्रेक्ष्य पर विचार करते हैं वहाँ गणितीय पक्षकी ही प्रधानता है। गणित के बिना विज्ञान आगे नहीं बढ़ सकता ! है। गणित के परिणाम अकल्प होते हैं। २ + २ = ४, तो ४ ही होंगे। ५ अथवा ३ कभी नहीं। प्रायः ऐसा होता
है कि गणितज्ञ दिन प्रतिदिन के कतिपय निरीक्षणों से निष्कर्ष निकालता है और उन निष्कर्षों के आधार पर भव्य एवं सुन्दर आकारों को गढ़ता है, उनको संजोता है। इन भव्य आकारों की सच्चाईका, अपने परीक्षण और प्रयोग से पता लगाता है। उनका सत्यापन करता है। इस प्रकार गणितज्ञ और प्रयोगकर्ता दोनों के सम्मिलित परिश्रम से विश्व नये-नये आविष्कारों और गवेषणाओं से लाभान्वित होता रहा है। इन दोनों ने मिलकर इस जगत को रेल्वे, टेलिफोन, वायुयान, अन्तरिक्ष यान, कम्प्यूटर आदि अनेक रहस्यमय उपकरण दिये हैं। भविष्य में न जाने कितने नये नये आविष्कार और होते रहेंगे। वस्तुतः वह व्यक्ति सुखी है जो एक साथ गणितज्ञ और प्रयोगकर्ता दोनों है। ___ आइन्स्टाइनने भी कहा है- 'सभी अन्य विज्ञानों से ऊपर गणितको विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त होने का एक कारण यह भी है कि जहाँ उसकी प्रतिज्ञप्तियाँ यथार्थ रूपसे निश्चित एवं विवाद रहित होती हैं, वहीं अन्य विज्ञानों की कुछ सीमा तक विवादास्पद होती हैं तथा नये आविष्कृत तथ्यों द्वारा निरस्त किये जानेके सतत संकटमें होती हैं। । गणितके उच्च सम्मानका दूसरा कारण यह है कि गणित के द्वारा शुद्ध प्राकृतिक विज्ञानों में जिस किसी सीमा तक ! जो निश्चिति प्रविष्टि हुई पाई जाती है वह गणितके बिना उपलब्ध नहीं हो सकती थी।
दिगम्बर जैनागममें सम्पूर्ण कर्मसिद्धान्त गणितसे ओतप्रोत है यही कारण है कि कर्म रहस्य वैज्ञानिक बन पड़ा। है। साथ ही यह प्रयोगकी अपेक्षा रखता है। बीज, संख्या एवं आकृति द्वारा गणितीय विकास हजारों वर्ष तक चला । किन्तु एक अद्भुत क्रान्ति भगवान महावीर और उसके बाद महात्मा गाँधी के युगमें दृष्टिगत हुई जिसे २०वीं ! अहिंसा सदी कह सकते हैं। अहिंसा का आन्दोलन सर्वव्यापी होता है एवं महान तीर्थ का प्रवर्तन करता है। । तीर्थंकर महावीरकी क्रान्ति यदि आध्यात्मिक थी तो महात्मा गाँधीकी राजनैतिक इन दोनों क्रांतियों में अहिंसा, । अनेकता और अपरिग्रहको प्रमुखता दी गई।
प्रायः सत्रहवीं सदीके प्रारम्भ में यूरोप में गणित एवं विज्ञान अगम्य एवं अपार रूपसे विकसित होते चले गये। । उद्योग और शोध कार्यो में प्रायः अठारहवीं सदीके अन्त में एवं उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ में क्रान्ति प्रारम्भ हुई।। इस क्रान्ति से बीसवीं सदी में जैनधर्म के वैज्ञानिक पक्षको स्पष्ट करने में गति आई। प्राचीन काल में हुये प्रमुख । वैज्ञानिकों को अंगुलीपर गिना जा सकता है लेकिन आधुनिक सदी में उनकी संख्या में विशेष वृद्धि दृष्टव्य है। ।
साधारणतः वैज्ञानिक क्रान्ति के पूर्व विश्व की समस्त सभ्यताओं में जो धर्म प्रचलित थे वे भय और प्रलोभन ! के द्वारा समाज को धर्म के नाम पर अनुशासित किया करते थे। समाजमें जब भी किसी प्रकारका कष्ट, महामारी, प्राकृतिक प्रकोप अथवा अन्य संकट उपस्थित होता था, लोग धर्म के रहस्यों को जानने वाले पुरोहित वर्ग के पास पहुँचा करते थे, वे इन कष्टों को दैवीय शक्तियों अथवा भूत-प्रेत आदिका प्रकोप बताया करते थे। ।