Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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1 है। छंदशास्त्र की दृष्टि से इस स्तोत्र का उल्लेखनीय अवदान है। इसमें एक अक्षर वाले छंद से लेकर सत्ताइस अक्षर वाले छंद तक के 143 पद्य तथा तीस अक्षर वाले एक अर्णोदण्डक छंद का प्रयोग हुआ है। इस स्तोत्र की यह मौलिक विशेषता है। जैन संस्कृत साहित्य में इतने अधिक छंदों वाले स्तोत्र अन्यत्र दृष्टिगत नहीं होते । माताजी ने इस स्तोत्र का प्रारंभ एकाक्षरी श्री छंद से किया है।
ॐ माम् सोऽव्यात्
छंदों के इस उपवन में माताजी ने जैन दर्शन, अध्यात्म एवं इतिहास के पुष्पों का गुम्फन इतनी कुशलता से किया है कि उनकी तपः पूत लेखनी जादुई छड़ी का आभास देती है।
महावीराष्टक स्तोत्र : कविवर भागचंद्रजी 'भागेन्दु' की कृति 'महावीराष्टक' स्तोत्र जैन समाज में बहुप्रचलि स्तोत्र है। 8 शिखरणी छंदों में निबद्ध यह स्तोत्र भगवान महावीर की भावभीनी स्तुति है। भगवान महावीर के अलौकिक सौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन इस स्तोत्र का विशिष्ट आकर्षण है। बाह्य सौन्दर्य वर्णन के साथ ही कवि ने भगवान की वाग्गंगा में भी गहन अवगाहन किया है। वाग्गंगा का आलंकारिक शब्दचित्र देखें।
यदीया वाग्गगा विविध नयकल्लोल विमला । बृहज्जानाम्भोभि र्जगति जनतां या स्नपयति ॥ इदानी मप्येषा बुधजनरामले परिचिता । महावीर स्वामी नयन पथगामी भवतु मे ॥7॥
जैन स्तोत्र साहित्य की वाग्गंगा में गहरे पैठकर इस विष्कर्ष पर पहुँचना अवश्यंभावी है कि जैन साधु एवं साध्वियों ने अपनी तपःपूत लेखनी से अनेक उत्तमोत्तम स्तोत्र भारतीय साहित्य को प्रदान किए हैं। जैनों के स्तोत्र साहित्य की विपुलता, भव्यता, भावप्रवणता और माधुर्य की अनेक पौर्वात्य एवं पाश्चात्य जैनेतर मनीषियों ने । भूरि-भूरि प्रशंसा की है। यद्यपि अधिकांश स्तोत्रों का हिन्दी अनुवाद सुलभ है किन्तु आवश्यकता इस बात की ! है कि सभी संस्कृत स्तोत्रों का सरल हिन्दी में अनुवाद किया जाय, जिससे जनसाधारण भी इस भागीरथी में गहरे पैठ सकें, क्योंकि 'जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ' ।