Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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जादी कालिए जो
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देश की आज़ादी के लिए जो फांसी पर चढ़ गये
म. कपूरचंद जैन (रीडर एवं अध्यक्ष) जैन धर्मावलम्बी राष्ट्र कल्याण में सदैव अग्रसर रहे हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मानुयायी आत्मस्वातंत्र्य के साथ राष्ट्र स्वातंत्र्य के लिये तन-मन-धन से तत्पर रहे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रारंभ 1857 ई. की जनक्रांति से माना जाता है। 1857 से 1947 ई. के मध्य न जाने कितने शहीदों ने अपनी शहादत देकर आजादी के वृक्ष को सींचा, न जाने कितने क्रांतिकारियों ने अपने रक्त से क्रांतिज्वाला को प्रज्वलित रखा और न जाने कितने स्वातंत्र्य प्रेमियों ने जेलों की सलाखों में बंद रहकर स्वतंत्रता के वृक्ष की जड़ों को मजबूती प्रदान की। विडम्बना यह भी रही कि कुछ का नाम तो इतिहास में लिखा गया परन्तु बहुसंख्यक देश प्रेमी ऐसे रहे जिनके अवदान की कहीं चर्चा भी नहीं की गयी।
जैनधर्म एवं संस्कृति का एक समृद्धिशाली इतिहास है। पूरे देश में स्थित प्राचीन मंदिर एवं शिलालेख, खुदाई से प्राप्त सामग्री, हस्तलिखित ग्रंथ, प्राचीन मूर्तियाँ, विदेशी यात्रियों द्वारा वर्णित वर्णन हमारी गौरवशाली परम्परा प्रस्तुत करते हैं। इतिहास साक्षी है कि वर्तमान की गणतंत्र परम्परा के बीज भ. महावीर के समय से ही है। इसी तरह सम्राट | खारवेल आदि के समय जैनधर्म फला-फूला, अनेक शिलालेख इस बात की प्रामाणिकता सिद्ध करते हैं। देशोद्धारक भामाशाह ने राष्ट्र के लिये अपनी अपार संपत्ति न्योछावर कर दी। दुर्गपाल आशाशाह ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर बालक उदयसिंह की रक्षा की थी। ये तो मात्र उदाहरण हैं जैनियों का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान है। ___ आजादी की लड़ाई में जैनधर्मालम्बियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। आजादी के
आंदोलन में भाग लेने वाले प्रत्येक देशप्रेमी की अपनी अलग कहानी है। अलग अलग गाथायें है, कुछ स्मृतियां हैं तो कुछ अनुभव, कहीं परिवार की बर्बादी है, तो कहीं शरीर पर अगिनत इबारतें, किसी का परिवार बिखरा तो किसी की जिंदगी। ये देशप्रेमी न जाने । कितने दिनों तक भूखे प्यासे बीमार रहे और कितने कितने अत्याचार सहे। यह सब । जानकर, पढ़कर आत्मा कांप उठती है, दिल करूणा से भर उठता है। आजादी के इस । आंदोलन में भेदभाव नहीं था न जातपांत का, न अमीर गरीब का, न छोटे बडे का।सभी ।