Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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स्वाय
"रूपिणः पुद्गलाः॥” 5 (स्वतंत्रता के सूत्र पृ. सं. 272)
पुद्गल अरूपी द्रव्य नहीं किन्तु रूपी है। यहाँ रूपी शब्द से केवल रूप ग्रहण नहीं किया गया है किन्तु रूप के अविनाभावी स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण तथा गोल, त्रिकोण, चौकोर, लम्बा, चौड़ा आदि आकार को भी ग्रहण करना चाहिए। " नाणोः । ( 11 ) नाणोः प्रदेशा भवन्ति ।" (स्वतंत्रता के सूत्र पृ.सं. 279)
परमाणु के प्रदेश नहीं होते । अणु, पुद्गल होते हुए भी अणु के प्रदेश नहीं होते हैं। प्रदेश नहीं होते इसका मतलब ये नहीं कि अणु पूर्ण रूप से प्रदेश से रहित है । परन्तु परमाणु एक प्रदेश मात्र है। तथा द्वि आदि प्रदेश से रहित है। जैसे रेखागणित में बिन्दु सत्तावान होते हुए भी उसकी लम्बाई, चौडाई, मोटाई नहीं है, उसी प्रकार परमाणु स्वयं एक प्रदेशी सत्तावान् (अस्तित्ववान्) होते हुए भी इसकी लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई नहीं है ।
पुद्गल द्रव्य का उपकार
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“शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् । ( 19 ) " (स्वतंत्रता के सूत्र पृ.सं. 298) शरीरवाङ्मनसप्राण - अपानाः जीवानां पुदगलानां उपकारः ।
संसारी जीवों के पांचों शरीर, वचन, मन, श्वासोच्छवास पुद्गल से बनते हैं । अर्थात् शरीर आदि पुद्गल स्वरूप हैं।
“सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च । ( 20 ) " (स्वतंत्रता के सूत्र पृ.सं. 298)
जीवानां सुख-दुःख - जीवित - मरण - उपग्रहाश्च पुद्गलानानुपकारो भवति ।
सुख-दुःख, जीवन और मरण - ये भी पुद्गलों के उपकार हैं। शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वास चतुष्टय क्रम से गमन, व्यवहार, चिन्तवन और श्वासोच्छवास रूप से जीव का उपकार करते हैं। वैसे सुख आदि भी पुद्गल कृत उपकार हैं उसको बताने के लिए इस सूत्र में कहते हैं कि सुख, दुःख, जीवन, मरण भी पुद्गल कृत उपकार हैं।. 7. पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण सुरक्षा
आधुनिक विज्ञान में जो पर्यावरण सुरक्षा पारिस्थितिकी आदि का जो शोध-बोध हुआ है और हो रहा है इससे भी अधिक शोध-बोध प्राचीन भारतीय विज्ञान में हुआ था। इससे प्राचीन भारतीय विज्ञान को अहिंसा 'उदारपुरूषाणां तु वसुधैव कुटुम्बकं' अपरिग्रह, साम्यवाद आदि नाम से कहा जाता है। इसका विशेष वर्णन निम्नलिखित है ।—
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" सर्वेऽपि सुखिनः सन्तु सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखमाप्नुयात् ॥”
सम्पूर्ण जीव-जगत सुखी, नीरोगी, भद्र, विनयी, सदाचारी रहे। कोई भी कभी भी थोड़े भी दुःख को प्राप्त न करे ।
"शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषा प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥”
सम्पूर्ण विश्व मंगलमय हो, जीव-समूह परहित में निरत रहें सम्पूर्ण दोष विनाश को प्राप्त हो जावें, लोक में सदा सर्वदा सम्पूर्ण प्रकार से सुखी रहे ।
जीवों का उपकार
" परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।
परस्परोपग्रहो जीवानां उपकारः भवति ।" (स्वतंत्रता के सूत्र पृ.सं. 303 )
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