Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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मंत्र साधना की मनोवैज्ञानिकता
. जयकुमार 'निशांत' (टीकमगढ़) भाषा भावना को व्यक्त करने का सशक्त आधार होता है। परस्पर संवाद संप्रेषणा से आत्मीयता सौजन्यता एवं समरसता के साथ सौहार्द एवं प्रेम का वातावरण निर्मित होता है। भाषा के बिना पूजा अर्चना, भक्ति एवं स्वाध्याय संभव नहीं है। भाषा मनुष्य के लिए सर्वश्रेष्ठ वरदान है। मानव चाहे तो भाषा से भावना शुद्ध करके भगवान की आराधना कर ले, संसार को समेट ले या चित्त की विकृति से निंदा प्रशंसा करके संसार को बढ़ा ले।
भाषा से साहित्य का सृजन होता है जो संस्कृति धर्म एवं समाज के संस्मरण एवं संवर्द्धन से इतिहास बनता है, जो भूत एवं भविष्य का सेतु होता है। पौराणिक महापुरुषों के चरित्र से जहाँ मानसिक संबल मिलता है वहीं उनके द्वारा रचित शास्त्रों एवं ग्रन्थों से जीवनशैली को परिमार्जित करने वाले सूत्र भी मिलते हैं। साधक को यही सूत्र मंत्र बन । जाते हैं जिनसे साधक ऊर्जा के अक्षय कोश को उद्घाटित करके जीवन को कर्मों से मुक्त । कर संसार के दुःखों से छूट सकता है। __शब्द का निर्माण असर से होता है जबकि मंत्र का निर्माण बीजाक्षर से होता है जो अक्षर से कई गुने शक्तिशाली होते हैं, मंत्र का लयबद्ध शुद्धोचारण करने से पर्यावरण के । साथ साधक के अन्तर्मन को भी पावन पवित्र करते हैं।
मकारं च मनः प्रोक्तं प्रकारं त्राण मुच्यते।
मनस्त्राणंस्त्वयोगेन मन्त्र इत्यभिधीयते॥ मंत्र दो असरों से मिलकर बना है, 'म' अर्थात् मन की मनोकामना की 'त्र' अर्थात रक्षा करता है।
स्वमंत्र्यंते गुप्तं भाष्यंते मंत्र विद्धिरिति मंत्राः। जिनको मंत्रज्ञ गुप्त रूप से कहे वे मंत्र कहलाते हैं। यह मंत्र शब्द का व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ है।
__ अकारादि हकारान्ता वर्णाः मंत्राः प्रकीर्तिताः। अकार से हकार तक के स्वतंत्र असहाय अथवा परस्पर मिले हुए (असर) मंत्र कहलाते हैं। जिस प्रकार अलग अलग रोगों की औषधि अलग-अलग होती है, उसी प्रकार मंत्र |